नवरात्रि में करना चाहते हैं मातारानी के दर्शन, पहुंचे देश के इन प्रसिद्द दुर्गा मंदिर

आश्विन नवरात्रि का प्रारंभ 26 सितंबर, सोमवार से शुरू होने जा रहा हैं जो कि 4 अक्टूबर, मंगलवार तक जारी रहेगी। नवरात्रि के ये नौ दिन मातारानी के विभिन्न स्वरूपों को समर्पित होते हैं। नवरात्रि के पावन दिनों में भक्त मां दुर्गा के दर्शन करने मंदिरों में पहुंचते हैं। ऐसे में अगर आप इन दिनों में घूमने का प्लान बना रहे हैं तो मां दुर्गा के मंदिरों में दर्शन करने पहुंच सकते हैं। देशभर में मां दुर्गा के अनेकों मंदिर हैं, लेकिन कुछ मंदिर ऐसे हैं जो अपने चमत्कार, भव्यता, वास्तुकला सहित कई अन्य चीजों के लिए जाने जाते हैं। आज हम आपको दुर्गा देवी के कुछ खास मंदिरों के बारे में बताने जा रहे है जहां आपको हमेशा भक्तों का जमावड़ा देखने को मिलेगा। आइये जानते हैं इन मंदिरों के बारे में...

# वैष्णो देवी मंदिर, जम्मू कश्मीर

समुद्र तल से लगभग 15 हज़ार से भी अधिक मीटर की ऊंचाई पर त्रिकुट पहाड़ियों में स्थित वैष्णो देवी मां दुर्गा का पवित्र स्थान है। मान्यताओं के अनुसार जो भी वैष्णो देवी का दर्शन करता है तो उनकी सभी मुरादे पूरी हो जाती हैं। नवरात्रि में यहां लाखों भक्त दर्शन के लिए पहुंचते हैं। वैष्णो देवी मंदिर में दर्शन के लिए देश के कोने-कोने से श्रद्धालु आते हैं। यह मंदिर समुद्र तल से लगभग 15 हजार से भी ज्यादा मीटर की ऊंचाई पर त्रिकुट पहाड़ियों में स्थित है। जम्मू-कश्मीर के कटरा में स्थित वैष्णो देवी मंदिर का निर्माण लगभग 700 साल पहले एक ब्राह्मण पुजारी पंडित श्रीधर द्वारा कराया गया था। यह मंदिर कटरा से लगभग 12 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है।

# अधर देवी मंदिर, माउंट आबू

राजस्थान का एक मात्र खूबसूरत हिल स्टेशन माउंट आबू जितना की अपनी खूबसूरती और ठंडी जलवायु के लिए जाना जाता है उतना ही यह अधर देवी मंदिर के लिए भी विश्व प्रसिद्ध है। अधर देवी दुर्गा के नौ रूपों में से एक कात्यायनी का रूप हैं। जो देश की 52 शक्तिपीठों में छठा शक्तिपीठ में गिना जाता है। जहाँ भगवान शिव के तांडव के समय माता पार्वती का अधर यहीं गिरा था। माना जाता है की जब भगवान शिव ने माता पार्वती के शरीर पर तांडव किया था तब उसी दौरान माता पार्वती के होंठ इसी स्थल पर गिरे थे।

# नैना देवी मंदिर, नैनीताल

देवभूमि उत्तराखंड के नैनीताल का नाम नैना देवी मंदिर के ऊपर ही रखा गया है। जो अपनी परामर्श शक्ति और लोकप्रियता के कारण पूरे विश्व में प्रसिद्ध है। इस मंदिर में दो नैन हैं जो नैना देवी के माने जाते हैं, यह मंदिर नैना देवी को समर्पित है। इस मंदिर में सती के शक्ति रूप की पूजा होती है। कहा जाता है कि जब भगवान शिव सती के मृत शरीर को लेकर जब कैलाश पर्वत जा रहे थे तब इसी रास्ते में देवी सती के नेत्र गिरे थे। इसीलिए इस जगह पर इन मंदिर की स्थापना की गई थी।

# ज्वाला देवी मंदिर, हिमाचल प्रदेश

हिमाचल प्रदेश के कांगड़ा जिले में कालीधार पहाड़ी के बीच बसा है ज्वाला देवी का मंदिर। मां ज्वाला देवी तीर्थ स्थल को देवी के 51 शक्तिपीठों में से एक शक्तिपीठ माना जाता है। शक्तिपीठ वह स्थान कहलाते हैं जहां-जहां भगवान विष्णु के चक्र से कटकर माता सती के अंग गिरे थे। शास्त्रों के अनुसार ज्वाला देवी में सती की जिह्वा गिरी थी।

# मनसा देवी मंदिर, उत्तराखंड

कहा जाता है कि उत्तराखंड में स्थित मनसा देवी का नाम इस विश्वास से पड़ा कि देवी अपने भक्तों की सभी मुरादे पूरी कर देती हैं। यह मंदिर इस कदर पवित्र है कि उत्तराखंड के लगभग हर शहर से मां का दर्शन करने के लिए पहुंचते हैं। नवरात्रि में यहां हर दिन कार्यक्रम का आयोजन होता है।

# करणी माता मंदिर, बीकानेर

राजस्थान के ऐतिहासिक शहर बीकानेर से तक़रीबन 30 किलोमीटर दूर एक छोटा सा गांव देशनोक की सीमा पर यह अद्भुत मंदिर स्थित है, जो जोधपुर के सड़क मार्ग पर ही पड़ता है। इस मंदिर के करामाती आश्चर्य इसे देवी के भक्तों के बीच खासा लोकप्रिय बनाते हैं। इस मंदिर को चूहे वाला मंदिर के नाम से भी जानते हैं। इस मंदिर में हज़ारों लाखों चूहों को देख भक्त दंग रह जाते हैं। इसकी ख़ास बात यह है कि इतने चूहे होने के बावजूद यहाँ कोई महामारी का खतरा नहीं होता।

# कामाख्या शक्तिपीठ, असम

गुवाहाटी के पश्चिम में 8 किमी दूर नीलांचल पर्वत पर है। माता के सभी शक्तिपीठों में से कामाख्या शक्तिपीठ को सर्वोत्तम कहा जाता है। कहा जाता है कि यहां पर माता सती का गुह्वा मतलब योनि भाग गिरा था, उसी से कामाख्या महापीठ की उत्पत्ति हुई। कहा जाता है यहां देवी का योनि भाग होने की वजह से यहां माता रजस्वला होती हैं। यह हिन्दू धर्म के अनुसार 51 शक्तिपीठ में से एक है और सबसे महत्वपूर्ण तीर्थ स्थलों में गिना जाता है। इस मंदिर की अपनी अनेक विशेषतायें हैं जो अपने आश्चर्यों से भक्तों को आश्चर्य कर देती हैं।

# दक्षिणेश्वर काली मंदिर, कोलकाता

कोलकाता का मां दक्षिणेश्वर काली मंदिर यहां के सबसे प्रसिद्ध मंदिरों में से एक है। इसका निर्माण सन 1847 में शुरू हुआ था। कहते हैं जान बाजार की महारानी रासमणि ने स्वप्न देखा था, जिसके अनुसार मां काली ने उन्हें निर्देश दिया कि मंदिर का निर्माण किया जाए। उसके बाद इस भव्य मंदिर में मां की मूर्ति श्रद्धापूर्वक स्थापित की गई। सन् 1855 में मंदिर का निर्माण पूरा हुआ। यह मंदिर 25 एकड़ क्षेत्र में स्थित है।