चैत्र नवरात्रि 2022 : दुर्गा मां के इन प्रसिद्ध 10 मंदिरों में लगता हैं भक्तों का जमावाड़ा

मां दुर्गा की आराधना का पर्व नवरात्रि बड़े ही धूमधाम से मनाया जाता है। इस बार चैत्र नवरात्रि की शुरुआत 2 अप्रैल को हो रही हैं। वैसे तो देवी मां के दर्शन करने के लिए किसी दिन विशेष की जरूरत नहीं होती बस श्रद्धा चाहिए। लेकिन नवरात्रि के ये नौ दिन में शक्ति की देवी मां दुर्गा को विशेष रूप से समर्पित होते हैं और इसके लिए भक्तगण मंदिरों में दर्शन करने पहुचंते हैं। वैसे तो देशभर में मातारानी के कई मंदिर हैं लेकिन आज इस कड़ी में हम आपको दुर्गा देवी के कुछ खास मंदिरों के बारे में बताने जा रहे हैं जहां मां की विशेष कृपा पाने के लिए भक्तों की भारी भीड़ लगी रहती है। तो आइए जानते हैं देश में स्थित मां दुर्गा के कुछ प्रसिद्ध मंदिरों के बारे में...

माता वैष्णो देवी मंदिर

जम्मू में स्थित त्रिकूट पर्वत पर मां वैष्णो का निवास है। यहां माता वैष्णो देवी लक्ष्मी, सरस्वती और काली के साथ विराजमान हैं। कलियुग में माता वैष्णो का दर्शन बड़ा ही पुण्यदायी माना गया है। भगवान श्रीराम ने त्रेतायुग में देवी त्रिकूटा जिन्हें माता वैष्णो कहते हैं उन्हें इस स्थान पर रहकर कलियुग के अंत तक भक्तों के कष्ट दूर करने का आदेश दिया था। उस समय से देवी अपनी माताओं के संग यहां वास करती हैं और भगवान के कल्कि अवतार का प्रतीक्षा कर रही हैं। नवरात्र में माता के इस दरबार में दर्शन कर पाना बड़े ही सौभाग्य से होता है।

नैना देवी मंदिर

ऐसा माना जाता नैनीताल का नाम नैना देवी मंदिर के ऊपर ही रखा गया है। जो अपनी परामर्श शक्ति और लोकप्रियता के कारण पूरे विश्व में प्रसिद्ध है। इस मंदिर में दो नैन हैं जो नैना देवी के माने जाते हैं, यह मंदिर नैना देवी को समर्पित है। इस मंदिर में सती के शक्ति रूप की पूजा होती है। कहा जाता है कि जब भगवान शिव सती के मृत शरीर को लेकर जब कैलाश पर्वत जा रहे थे तब इसी रास्ते में देवी सती के नेत्र गिरे थे। इसीलिए इस जगह पर इन मंदिर की स्थापना की गई थी।

मां त्रिपुर सुंदरी मंदिर

बिहार के बक्सर में तकरीबन 400 साल पहले ‘मां त्रिपुर सुदंरी’ मंदिर का निर्माण हुआ था। कहा जाता है कि इसका निर्माण तांत्रिक भवानी मिश्र ने किया था। यहां मंदिर में प्रवेश करते हैं अद्भुत शक्ति का आभास होता है। साथ ही मध्य रात्रि में मंदिर परिसर से आवाजें आनी शुरू हो जाती हैं। पुजारी बताते हैं कि यह आवाजें मां की प्रतिमाओं के आपस में बात करने से आती हैं। हालांकि इस मंदिर से आने वाली आवाजों पर पुरातत्व विज्ञानियों ने कई बार शोध भी किया गया लेकिन उन्हें कुछ नहीं मिल सका। इसके बाद यह शोध भी बंद कर दिए गए। वासंतिक हो या शारदीय यहां साधकों की भीड़ लगी रहती है।

कामाख्या देवी मंदिर

गुवाहाटी से तक़रीबन 8 किलोमीटर दूर कामाख्या में यह मंदिर स्तोत है जो असम की राजधानी दिसपुर के पास है। यह मंदिर शक्ति की देवी सती का मंदिर है, जिससे विशाल तांत्रिक महत्त्व जुड़ा हुआ है। यह मंदिर नीलाचल पर्वत पर बना हुआ है। वर्तमान में यह तंत्र सिद्धि का सर्वोच्च स्थल माना जाता है। यह हिन्दू धर्म के अनुसार 51 शक्तिपीठ में से एक है और सबसे महत्वपूर्ण तीर्थ स्थलों में गिना जाता है। इस मंदिर की अपनी अनेक विशेषतायें हैं जो अपने आश्चर्यों से भक्तों को आश्चर्य कर देती हैं। अगर आप भी इस मंदिर के आश्चर्यों को अपने अपनी आँखों से देखना चाहते हैं तो यहाँ अवश्य आएं।

दुर्गा परमेश्वरी मंदिर

मंगलूरू स्थित दुर्गा परमेश्वरी मंदिर को एक खास परंपरा के लिए जाना जाता है। यहां पर अग्नि केलि नाम की एक परंपरा के तहत भक्त एक-दूसरे पर अंगारे फेंकते हैं। स्थानीय लोगों के अनुसार यह परंपरा आज से नहीं बल्कि सदियों से चली आ रही है। जानकारी के अनुसार ये खेल दो गांव आतुर और कलत्तुर के लोगों के बीच खेला जाता है। मंदिर में सबसे पहले देवी की शोभा यात्रा निकाली जाती है, जिसके बाद सभी तालाब में डुबकी लगाते हैं। फिर अलग- अलग गुट बना लेते हैं। अपने अपने हाथों में नारियल की छाल से बनी मशाल लेकर एक दूसरे के विरोध में खड़े हो जाते हैं। फिर मशालों जलाकर इस परंपरा का निर्वहन किया जाता है। नवरात्र पर यहां भक्तों की भारी भीड़ रहती है।

करणी माता मंदिर

राजस्थान के ऐतिहासिक शहर बीकानेर से तक़रीबन 30 किलोमीटर दूर एक छोटा सा गांव देशनोक की सीमा पर यह अद्भुत मंदिर स्थित है, जो जोधपुर के सड़क मार्ग पर ही पड़ता है। इस मंदिर के करामाती आश्चर्य इसे देवी के भक्तों के बीच खासा लोकप्रिय बनाते हैं। इस मंदिर को चूहे वाला मंदिर के नाम से भी जानते हैं। इस मंदिर में हज़ारों लाखों चूहों को देख भक्त दंग रह जाते हैं। इसकी ख़ास बात यह है कि इतने चूहे होने के बावजूद यहाँ कोई महामारी का खतरा नहीं होता। अनेकों भक्तों का मत है कि करनी माता साक्षात दुर्गा देवी का अवतार थीं, जो यहाँ तक़रीबन साढ़े सात सौ वर्ष पूर्व यहाँ पर बनी एक गुफा में रहकर अपने इष्ट देव की पूजा किया करती थीं। इसलिए यहाँ यह भव्य मंदिर स्थापित किया गया था।

दक्षिणेश्वर काली मंदिर

कोलकाता में हुगली नदी के किनारे स्थित यह मंदिर भक्तों की अगाध श्रद्धा का केंद्र है। इस मंदिर की स्थापना के बारे में कहा जाता है कि जान बाजार की जमींदार रानी रासमणि को मां काली ने स्वप्न में दर्शन दिया साथ ही मंदिर निर्माण कराए जाने का भी निर्देश दिया। इसके बाद 1847 में दक्षिणेश्वर मंदिर का निर्माण शुरू हुआ। यह मंदिर स्वामी रामकृष्ण परमहंस की कर्मभूमि भी रही है। यूं तो यहां सालभर भक्त आते-जाते रहते हैं लेकिन नवरात्र के दिनों में यहां पर देवी के दर्शन का विशेष लाभ माना गया है।

अधर देवी मंदिर (अर्बुदा देवी)

राजस्थान का एक मात्र खूबसूरत हिल स्टेशन माउंट आबू जितना की अपनी खूबसूरती और ठंडी जलवायु के लिए जाना जाता है उतना ही यह अधर देवी मंदिर के लिए भी विश्व प्रसिद्ध है। अधर देवी दुर्गा के नौ रूपों में से एक कात्यायनी का रूप हैं। जो देश की 52 शक्तिपीठों में छठा शक्तिपीठ में गिना जाता है। जहाँ भगवान शिव के तांडव के समय माता पार्वती का अधर यहीं गिरा था। यह मंदिर तीन नामों से जाना जाता है- अर्बुदा देवी,अधर देवी और अम्बिका देवी। कहा जाता है कि यह मंदिर साढ़े पांच साल पुराना है। चूँकि यहाँ माता पार्वती था इसलिए इसका नाम अधर पड़ गया। ऐसा माना जाता है की जब भगवान शिव ने माता पार्वती के शरीर पर तांडव किया था तब उसी दौरान माता पार्वती के होंठ इसी स्थल पर गिरे थे।

श्री महालक्ष्मी मंदिर

कोल्हापुर में स्थापित यह मंदिर प्रसिद्ध शक्तिपीठों में से एक है। इस मंदिर का निर्माण चालुक्य साम्राज्य के द्वारा करवाया गया माना जाता है। इस मंदिर में मां के महालक्ष्मी के स्वरूप की आराधना की जाती है। यहां भगवान विष्णु मां के साथ विराजते हैं। इसके अलावा इस मंदिर की खासियत है कि यहां सूर्य भगवान साल में दो बार मां महालक्ष्मी के चरणों को छूकर पूजा करते हुए दिखाई देते हैं। इस दौरान इस मंदिर में 3 दिन का विशेष उत्सव भी होता है। यह दृश्य हर साल ‘रथ सप्तमी’ पर लोगों को जनवरी माह में देखने को मिलता है। कहते हैं कि इस मंदिर में भक्त के मन में जो भी विचार आता है, मां की कृपा से वह पूरा जाता है।

दुर्गा मंदिर

वाराणसी का यह भव्य मंदिर माता दुर्गा को समर्पित है। माना जाता है की यह मंदिर 18 वीं शताब्दी में निर्माण गया था जिसे बंगाल की एक रानी ने बनवाया था। इस मंदिर में एक दुर्गा कुण्ड है जो इस मंदिर का अहम हिस्सा है। नवरात्र में यह मंदिर देखने योग्य होता है। इस मंदिर की साज-सज्जा ऐसी होती है जैसे मानों नई नवेली दुल्हन हो। यहाँ आप दुर्गा देवी का आशीर्वाद और देवी के दरबार में हाज़िरी लगाने के लिए आ सकते हैं। जहाँ देवी खुद कामनाएं सुनती हैं।