हो जाएं सावधान! हमारे स्वास्थ्य के लिए खतरा है ई-कचरा, जानें-इससे जुड़ी और भी खास-खास बातें

कंप्यूटर तथा उससे संबंधित अन्य उपकरण तथा टी.वी., वाशिंग मशीन एवं फ्रिज जैसे घरेलू उपकरण और कैमरे, मोबाइल फोन तथा उससे जुड़े अन्य उत्पाद जब चलन/उपयोग से बाहर हो जाते हैं तो इन्हें संयुक्त रूप से ई-कचरे की संज्ञा दी जाती है।

देश में जैसे-जैसे डिजिटाइज़ेशन (Digitisation) बढ़ रहा है, उसी अनुपात में ई-कचरा भी बढ़ रहा है। इसकी उत्पत्ति के प्रमुख कारकों में तकनीक तथा मनुष्य की जीवन शैली में आने वाले बदलाव शामिल हैं।

ट्यूबलाइट, बल्ब, सीएफएल जैसी चीजें जिन्हें हम रोज़मर्रा इस्तेमाल में लाते हैं, उनमें भी पारे जैसे कई प्रकार के विषैले पदार्थ पाए जाते हैं, जो इनके बेकार हो जाने पर पर्यावरण और मानव स्वास्थ्य को प्रभावित करते हैं।

इस कचरे के साथ स्वास्थ्य और प्रदूषण संबंधी चुनौतियाँ तो जुड़ी हैं ही, लेकिन साथ ही चिंता का एक बड़ा कारण यह भी है कि इसने घरेलू उद्योग का स्वरूप ले लिया है और घरों में इसके निस्तारण का काम बड़े पैमाने पर होने लगा है।

चीन में प्रतिवर्ष लगभग 61 लाख टन ई-कचरा उत्पन्न होता है और अमेरिका में लगभग 72 लाख टन तथा पूरी दुनिया में कुल 488 लाख टन ई-कचरा उत्पन्न हो रहा है।

यह बात सौ फीसद सही है कि मोबाइल फोन, लैपटॉप, कंप्यूटर, एमपी थ्री प्लेयर और टीवी हमारी जिंदगी को अहम हिस्सा बन चुका है। महानगरों और छोटे शहरों की बात तो जाने दें, गांव-कस्बों तक में इनका चलन आम हो गया है। इलेक्ट्रानिक के ये सामान लोगों को न सिर्फ उनके कामकाज को आसान बनाते हैं बल्कि मनोरंजन का जरिया भी हैं। इन इलेक्ट्रानिक सामानों की खरीदारी करते वक्त हम में से शायद ही कोई सोचता होगा कि जिन उपकरणों को वह खरीद रहा है टूटने या बेकार होने के बाद उनकी क्या उपयोगिता रह जाती होगी। भारत ही नहीं दूसरे देशों में भी इलेक्ट्रॉनिक कचरा (ई-कचरा) से आम जीवन और पर्यावरण पर क्या प्रभाव पड़ता है, यह भी हम नहीं जानते।

सिर्फ अकेले अमेरिका में हर साल तीस लाख टन ई-कचरा फेंका जाता है। सवाल यह है कि आखिरकार यह ई-कचरा जाता कहां है। रिसाइकिलिंग की परेशानियों और लगने वाली लागत के साथ-साथ ई-कचरा की निर्यात में दी गई रिआयत की वजह से इनमें से ज्यादातर ई-कचरे को भारत, केन्या और चीन भेज दिया जाता है। भारत में पर्यावरण के निचले स्तर के मानदंड और काम करने का स्तर की वजह से रिसाइकिलिंग का धंधा ज्यादा मुनाफे वाला है।

हालांकि ऐसा करना खतरनाक है और आम जीवन पर ही नहीं पर्यावरण पर भी इसका प्रभाव पड़ता है। इसके बावजूद भारत में अमेरिका से आयातित कचरे की रिसाइकिलिंग धड़ल्ले से हो रही है। भारत में इस तरह का कानून भी नहीं है जो ई-कचरे के रिसाइकिलिंग पर रोक लगा सके। हालांकि पर्यावरणविद् ई-कचरे से होने वाले नुकसान पर चिंता भी जता चुके हैं।

चिंता की बात यह है कि ई-कचरे को रिसाइकिलिंग करते हुए अगर ध्यान नहीं दिया गया तो उससे निकलने वाली टाक्सिन व दूसरी गैसें सेहत और पर्यावरण दोनों के लिए नुकसानदेह हैं। दरअसल ई-कचरा खरीदने वाले इन्हें दोबारा इस्तेमाल के लायक बनाने के लिए बिना किसी तरह की सावधानी बरते उसे जला कर उससे काम की चीजें निकालते हैं लेकिन ऐसा करते हुए किसी तरह की सावधानी नहीं बरती जाती।

घरेलू उत्पाद के कचरों में बड़ी मात्रा में पारा, जस्ता, कैडमियम सहित दूसरे रसायनिक तत्व होते हैं जो सेहत के लिए ठीक नहीं होते हैं। इनमें टाक्सिन की मात्रा बड़ी तादाद में होती है। अगर इन्हें ठीक ढंग से इस्तेमाल नहीं किया गया तो इनके खाने-पीने के सामना व पानी घुलने का खतरा भी रहता रहता है। इसके अलावा ओजोन पर भी इसका प्रभाव पड़ने का अंदेशा होता है।

इनमें कैंसर, स्नायु तंत्र और आंत की बीमारी हो सकती है। इसलिए जरूरी है कि ई-कचरे के दोबारा इस्तेमाल के दौरान बहुत ही सावधानी बरतने की जरूरत है। सरकार को भी इसके लिए ठोस नीति बनाने की जरूरत है ताकि ई-कचरे का दोबारा इस्तेमाल करने वाला इंसानी जिंदगी से खिलवाड़ न कर सके।