
कोविड-19 महामारी के दौरान जब पूरी दुनिया एक अदृश्य वायरस से जूझ रही थी, उस कठिन समय में जन्मे बच्चों में अद्भुत इम्यूनिटी (रोग प्रतिरोधक क्षमता) देखने को मिली। हाल ही में एक हैरान करने वाली रिसर्च सामने आई है, जिसमें यह बताया गया है कि लॉकडाउन के दौरान पैदा हुए बच्चों की इम्यूनिटी बहुत मजबूत पाई गई है। ये बच्चे सामान्य समय में जन्मे बच्चों की तुलना में कम बीमार पड़ते हैं। आयरलैंड के यूनिवर्सिटी कॉलेज कॉर्क द्वारा की गई स्टडी में यह पाया गया कि लॉकडाउन के दौरान जन्मे बच्चों में केवल 5% मामलों में एलर्जी पाई गई, जबकि इससे पहले यह आंकड़ा लगभग 22.8% था। इसके अलावा, इन बच्चों को एंटीबायोटिक दवाओं की जरूरत भी बहुत कम पड़ी, केवल 17% बच्चों को ही एक साल में एंटीबायोटिक दी गई, जबकि सामान्य तौर पर यह संख्या लगभग 80% होती है।
लॉकडाउन के दौरान जन्मे बच्चों में क्या खास बात है?शोधकर्ताओं का मानना है कि लॉकडाउन के दौरान जन्मे बच्चों के पेट में मौजूद माइक्रोबायोम (Good Bacteria) अन्य बच्चों से अलग होते हैं। ये माइक्रोबायोम शरीर की इम्यूनिटी को मजबूत करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं, और यही कारण है कि इन बच्चों को एलर्जी, इंफेक्शन और सामान्य बीमारियों से अधिक राहत मिलती है।
माइक्रोबायोम क्या है?माइक्रोबायोम हमारे शरीर, विशेषकर आंतों में पाए जाने वाले लाखों सूक्ष्मजीवों का समूह होता है, जो हमारे स्वास्थ्य के लिए फायदेमंद होते हैं। नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ हेल्थ (NIH) के अनुसार, ये सूक्ष्मजीव हमारे खाने को पचाने, एनर्जी बनाने, संक्रमण से लड़ने और इम्यून सिस्टम को मजबूत करने में अहम भूमिका निभाते हैं।
लॉकडाउन में पैदा हुए बच्चे क्यों खास हैं?लॉकडाउन के दौरान जब पूरी दुनिया ठहर सी गई थी, तो इसका सबसे बड़ा फायदा इन नवजात बच्चों को हुआ। ट्रैफिक, प्रदूषण, धूल-मिट्टी और वायरल संक्रमण की कमी से उनके फेफड़े साफ-सुथरे रहे। वायरस और बैक्टीरिया के संपर्क में कम आकर, इनकी इम्यूनिटी को सुरक्षित तरीके से विकसित होने का समय मिला। इन बच्चों को एक तरह से प्राकृतिक एंटीबायोटिक मिला, जिसमें साफ हवा, शुद्ध वातावरण और एक सुकून भरी शुरुआत थी।