‘ध्यान’ : चार सरलतम विधियाँ, जिन्हें करने से दूर होते हैं कष्ट

योग का आठवां अंग ‘ध्यान’ अति महत्वपूर्ण हैं। इसका अर्थ है भीतर से जाग जाना। ध्यान के लिए किसी विधि की आवश्यकता नहीं होती। फिर भी ध्यान की योग और तंत्र में हजारों विधियां बताई गई है। हिन्दू, जैन, बौद्ध तथा साधु संगतों में अनेक विधि और क्रियाओं का प्रचलन है। विधि और क्रियाएं आपकी शारीरिक और मानसिक तंद्रा को तोडऩे के लिए है जिससे की आप ध्यानपूर्ण हो जाएं। एक मात्र ध्यान ही ऐसा तत्व है कि जिसे साधने से सभी स्वत: ही सधने लगते हैं, लेकिन योग के अन्य अंगों पर यह नियम लागू नहीं होता। आज के मानव की जरूरत है ध्यान। ध्यान से शरीर और मन के सारे कष्ट दूर किए जा सकते हैं। दूसरे शब्दों ऐसा कहा जा सकता है जहाँ चित्त को लगाया जाए उसी में वृत्ति का एकतार चलना ध्यान है। धारणा का अर्थ चित्त को एक जगह लाना या ठहराना है लेकिन ध्यान का अर्थ है जहाँ भी चित्त ठहरा हुआ है उसमें वृत्ति का एकतार चलना ध्यान है। उसमें जाग्रत रहना ध्यान है।

ध्यान विधियाँ—ध्यान करने की अनेकों विधियों में एक विधि यह है कि ध्यान किसी भी विधि से किया नहीं जाता, हो जाता है। इन विधियों के माध्यम से ध्यान को जाग्रत किया जा सकता है। इसके अलावा जैन, बौद्ध तथा साधु संगतों में अनेक विधियों का प्रचलन है। उन तमाम विधियों में से आप किसी भी एक विधि का चयन कर लें और बस उसे ही करते रहें। ध्यान धीरे-धीरे घटित होने लगेगा। यहां प्रस्तुत है ध्यान की सरलतम चार विधियां, जिनको करने से आपको चमत्कारिक लाभ प्राप्त होंगे—

* सिद्धासन में बैठकर सर्वप्रथम भीतर की वायु को श्वासों के द्वारा गहराई से बाहर निकालें। फिर कुछ समय के लिए आंखें बंदकर केवल श्वासों को गहरा-गहरा लें और छोड़ें। इस प्रक्रिया में शरीर की दूषित वायु बाहर निकलकर मस्तिष्क शांत और तन-मन प्रफुल्लित हो जाएगा। ऐसा प्रतिदिन करते रहने से ध्यान जाग्रत होने लगेगा।

* सिद्धासन में आंखें बंद करके बैठ जाएं। फिर अपने शरीर और मन पर से तनाव हटा दें अर्थात उसे ढीला छोड़ दें। चेहरे पर से भी तनाव हटा दें। बिल्कुल शांत भाव को महसूस करें। महसूस करें कि आपका संपूर्ण शरीर और मन पूरी तरह शांत हो रहा है। नाखून से सिर तक सभी अंग शिथिल हो गए हैं। इस अवस्था में 10 मिनट तक रहें।

*किसी भी सुखासन में आंखें बंदकर शांत व स्थिर होकर बैठ जाएं। फिर बारी-बारी से अपने शरीर के पैर के अंगूठे से लेकर सिर तक अवलोकन करें। इस दौरान महसूस करते जाएं कि आप जिस-जिस अंग का अवलोकन कर रहे हैं वह अंग स्वस्थ व सुंदर होता जा रहा है। यह है सेहत का रहस्य। शरीर और मन को तैयार करें ध्यान के लिए।

*चौथी विधि क्रांतिकारी विधि है जिसका इस्तेमाल अधिक से अधिक लोग करते आएं हैं। इस विधि को कहते हैं साक्षी भाव या दृष्टा भाव में रहना। अर्थात देखना ही सबकुछ हो। देखने के दौरान सोचना बिल्कुल नहीं। यह ध्यान विधि आप कभी भी, कहीं भी कर सकते हैं। सडक़ पर चलते हुए इसका प्रयोग अच्छे से किया जा सकता है।

उपरोक्त चारों ही तरह की सरलतम ध्यान विधियों के दौरान वातावरण को सुगंध और संगीत से तरोताजा और आध्यात्मिक बनाएं। चौथी तरह की विधि के लिए सुबह और शाम के सुहाने वातावरण का उपयोग करें।