किशोरावस्था में प्रवेश कर चुकीं लड़कियां मासिक धर्म के दौरान सैनिटरी पैड का इस्तेमाल करती हैं। मासिक धर्म के दौरान सैनिटरी पैड का इस्तेमाल ब्लड, वेजाइनल म्यूकस और पीरियड्स के दौरान शरीर से निकलने वाले दूसरे वेस्ट को सोखने के लिए किया जाता है। लेकिन सैनिटरी पैड से जुड़ी एक स्टडी में कुछ ऐसी बाते सामने आई है जो वाकई में डराने वाली है। नई स्टडी के अनुसार, नैपकिन के इस्तेमाल से कैंसर और बांझपन खतरा बढ़ जाता है।
एनजीओटॉक्सिक्स लिंक की ओर से की गई यह स्टडी इंटरनेशनल पोल्यूटेंट एलिमिनेशन नेटवर्क के टेस्ट का एक हिस्सा है, जिसमें भारत में सैनिटरी नैपकिन बेचने वाले 10 ब्रांड्स के प्रॉडक्ट्स को शामिल किया गया। स्टडी के दौरान शोधकर्ताओं को सभी सैंपलों में थैलेट (phthalates) और वोलेटाइल ऑर्गेनिक कंपाउंड (VOCs) के तत्व मिले। चिंता की बात है कि यह दोनों दूषित पदार्थ कैंसर की सेल्स बनाने में सक्षम होते हैं।चिंता वाली बात यह है कि दोनों दूषित पदार्थ कैंसर की सेल्स बनाने में सक्षम होते हैं। डॉक्टर्स के मुताबिक वोलेटाइल ऑर्गेनिक कंपाउंड का इस्तेमाल पैड में खुशबू के लिए किया जाता है, जिससे एलर्जी हो सकती है।उन्होंने कहा कि एक बार पैड के निस्तारण के बाद वह मिट्टी में जुड़ जाते हैं और आखिर में खाद का हिस्सा बन जाते हैं जिससे स्वास्थ्य को भी नुकसान हो सकता है।
इस स्टडी में शामिल डॉक्टर ने बताया कि सबसे चिंता की बात यह है कि सबसे ज्यादा चिंता की बात यह है कि सैनिटरी पैड के इस्तेमाल की वजह से बीमारी बढ़ने का खतरा ज्यादा है। दरअसल, महिला की त्वचा के मुकाबले वजाइना पर इन गंभीर कैमिकलों का ज्यादा असर होता है। ऐसे में इस वजह से यह खतरा और ज्यादा बढ़ जाता है।
आपको बता दे, नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे के ताजा आंकड़ों के अनुसार, 15 से 24 साल के बीच करीब 64% ऐसी भारतीय लड़कियां हैं जो सैनिटरी नैपकिन का इस्तेमाल करती हैं। पिछले कुछ समय में जागरूकता बढ़ने की वजह से इसके इस्तेमाल करने में भी बढ़ोतरी देखी गई है।