अमेरिकी शोध के मुताबिक़ यह दवा रहेगी कोरोना के इलाज में असरदार, तीन दिन में मिला आराम

दुनियाभर के 200 से ज्यादा देश कोरोना से प्रभावित हैं और इसके बढ़ते संक्रमण का [प्रकोप झेल रहे हैं। कोरोना संक्रमितों का आंकड़ा 70 लाख और इससे मरने वालों की संख्या 4 लाख से ऊपर पहुंच चुकी हैं। ऐसे में लगातार इसकी दवाई और वैक्सीन को लेकर शोध जारी हैं। हांलाकि वरतमान में कोरोना मरीजों का इलाज पहले से उपलब्ध एनी दवाइयों की मदद से किया जा रहा हैं। हाल ही में, अमेरिकी शोधकर्ताओं ने कैंसर की दवा से कोरोना संक्रमण की गंभीरता कम करने की बात कही हैं। शोधकर्ताओं के मुताबिक, ब्लड कैंसर की दवा से संक्रमित मरीजों की सांस लेने की तकलीफ को कम किया जा सकता है। इसके जरिए मरीजों के इम्यून सिस्टम को भी कंट्रोल किया जा सकता है। इम्यून सिस्टम में ज्यादा एक्टिव होने के कारण गंभीर संक्रमण की संभावना होती है।

साइंस इम्यूनोलॉजी जर्नल में प्रकाशित इस शोध के मुताबिक, कैंसर की दवा 'एकैलब्रूटिनिब' कोरोना मरीजों में बीटीके प्रोटीन यानी ब्रूटॉन टायरोसिन काइनेज को ब्लॉक करती है। इम्यून सिस्टम में यह प्रोटीन अहम रोल अदा करता है। कई बार जब इम्यून सिस्टम ज्यादा एक्टिव हो जाता है तो यह शरीर को संक्रमण से बचाने की बजाय सूजन का कारण बनने लगता है।

इम्यून सिस्टम में सायटोकाइनिन प्रोटीन की वजह से ऐसा होता है। इस प्रक्रिया को चिकित्सकीय भाषा में सायटोकाइनिन स्टॉर्म भी कहा जाता है। इस प्रक्रिया में ब्रूटॉन टायरोसिन काइनेज प्रोटीन का भी रोल होता है। इसलिए कैंसर की दवा के जरिए कोरोना मरीजों में इस प्रोटीन को ब्लॉक किया जा सकता है।

शोधकर्ताओं का कहना है कि कोरोना मरीजों में सायटोकाइनिन प्रोटीन ज्यादा मात्रा में रिलीज होता है, जिसके कारण इम्यून सिस्टम उल्टा ही काम करने लगता है और फेफड़ों को नुकसान पहुंचाने लगता है। कोरोना के 19 मरीजों पर एक छोटा सा अध्ययन किया गया तो पाया गया कि उनके शरीर में ऑक्सीजन का स्तर घट रहा था और सूजन बढ़ रही थी।

शोधकर्ताओं का दावा है कि कोरोना के 19 मरीजों में से 11 मरीजों को दो दिन तक ऑक्सीजन दी गई थी, जबकि बाकी आठ मरीज डेढ़ दिन तक वेंटिलेटर पर रहे थे। इन मरीजों को कैंसर की दवा देने के एक से तीन दिन के अंदर सूजन कम हुई और सांस लेने की तकलीफ में भी बहुत आराम मिला। 11 मरीजों को दिया जा रहा ऑक्सीजन सपोर्ट भी हटा दिया गया और उन्हें हॉस्पिटल से छुट्टी दे दी गई।

वेंटिलेटर पर रह रहे आठ में से चार मरीजों को राहत मिलने पर सपोर्ट हटा लिया गया और दो को अस्पताल से छुट्टी दे दी गई। दुयोगवश अन्य दो मरीजों की तबतक मौत हो चुकी थी। हालांकि इसके और भी कारण रहे होंगे। इन मरीजों की ब्लड रिपोर्ट में सामने आया कि इनका ब्लड प्रोटीन इंटरल्यूकिन-6 का स्तर बढ़ा हुआ था। सूजन का कारण बनने वाला यह प्रोटीन कैंसर की दवा देने के बाद कम हुआ था।

साइंस इम्यूनोलॉजी जर्नल में प्रकाशित शोध के मुताबिक, क्लीनिकल प्रैक्टिस के लिए इस दवा के इस्तेमाल की सलाह नहीं दी जानी चाहिए। कैंसर की इस दवा का प्रयोग और अध्ययन बहुत ही कम मरीजों पर हुआ है। इसलिए कुछ शोधकर्ताओं का मानना है कि इसका इस्तेमाल मरीजों की स्थिति पर निर्भर करता है।