बड़ा सवाल! आखिर कब तक आ सकती है कोरोना वायरस की वैक्सीन?

कोरोना वायरस (Coronavirus) से पूरी दुनिया में 42,000 से अधिक लोगों की मौत हो चुकी है। दुनियाभर के 204 देश कोरोना वायरस संक्रमण की चपेट में हैं। आठ लाख से अधिक लोग कोरोना वायरस से संक्रमित हैं। अमेरिका में अब तक 3,424 लोगों की मौत कोरोना वायरस के कारण हो चुकी है, जबकि 1,75,669 लोग संक्रमित हैं। इटली और स्‍पेन के बाद अमेरिका तीसरा देश हो गया है, जहां कोरोना वायरस से मौतों का आंकड़ा चीन से अधिक हो गय है। भारत में भी कोरोना वायरस के मरीजों की संख्या में तेजी से बढ़ोतरी हो रही है। अब तक देश में कोरोना वायरस पीड़ितों की कुल संख्या 1618 हो गई है और इसके चलते मरने वालों की संख्या भी बढ़कर 52 हो गई है। मंगलवार को देश में कोविड-19 (Covid-19) के 315 नए मामले सामने आए हैं। ये पहली बार है, जब देश में एक दिन में 300 से ज्यादा मामले दर्ज किए गए हैं। वहीं, बीते दिन दिनों पर नजर डाले तो 626 नए केस सामने आ चुके है। सबसे ज्यादा मामले महाराष्ट्र से हैं, जहां 302 लोग इसकी चपेट में आ चुके हैं। इसके बाद दूसरे स्थान पर केरल (241), तीसरे पर तमिलनाडु (124) और चौथे स्थान पर देश की राजधानी दिल्ली (120) है। पूरी दुनिया में कोरोना के बढ़ते मामलों को देखते हुए यह सवाल मन में जरुर उठता है कि आखिर इस वायरस को लेकर वैक्सीन कब तक आएगी।

ऐसे में कहा जा रहा है कि इसकी कोई स्पष्ट सीमा नहीं है। कई देश कोरोना वायरस से निपटने के लिए दवा बनाने की कोशिश में जुटे हैं लेकिन कामयाबी नहीं मिल पाई है। इसके पहले फैले सार्स वायरस को लेकर भी अब तक कोई सटीक वैक्सीन नहीं बनाई जा सकी है। ऐसे में कोरोना की दवा जल्द बन जाएगी इस पर संशय की स्थिति है।

दूसरी ओर कुछ लोग ये सवाल भी उठा रहे हैं कि जब लक्षणों के आधार पर इलाज से कोरोना वायरस संक्रमण को दूर किया जा सकता है और लोग ठीक भी हो रहे हैं तो फिर इसके लिए अलग से दवा बनाने की क्या ज़रूरत है। विशेषज्ञों का मानना है कि कोरोना वायरस और एचआईवी वायरस का एक जैसा मॉलिक्युलर स्ट्रक्चर होने के कारण मरीज़ों को ये एंटी ड्रग दिए जा सकते हैं।

एचआईवी की दवा कारगर

एचआईवी एंटी ड्रग लोपिनाविर (LOPINAVIR) और रिटोनाविर (RITONAVIR) एंटी ड्रग देकर जयपुर के सवाई मान सिंह अस्पताल में तीन मरीज़ों का इलाज किया गया और वो कोरोना के संक्रमण से नेगेटिव हुए। इसे रेट्रोवायरल ड्रग भी कहा जाता है। इन दवाओं का इस्तेमाल साल 2003 में सार्स (SARS) वायरस के इलाज में भी किया गया था। दरअसल उस वक़्त इस बात के सबूत मिले थे कि एचआईवी के मरीज़ जो ये दवाएं ले रहे थे और उन्हें सार्स से पीड़ित थे, उनका स्वास्थ्य जल्द बेहतर हो रहा था। प्रो। जोनाथन बॉल का भी मानना है कि सार्स और कोरोना दोनों लगभग एक जैसे ही हैं इसलिए ये दवाएं असर कर सकती हैं। हालांकि वो यह भी कहते हैं कि इन दवाओं के इस्तेमाल के लिए भी एक सीमा होनी चाहिए और उन्हीं लोगों पर उनका इस्तेमाल किया जाए जो बेहद गंभीर हों।

भविष्य में इसे फैलने से रोका जा सकता

विशेषज्ञ कहते हैं कि अगर कोरोना वायरस का इलाज ढूंढ लिया गया तो भविष्य में इसे फैलने से रोका जा सकता है। आने वाले समय में ये महामारी दुनिया को घुटनों पर न ला पाए इसके लिए ज़रूरी है कि कोरोना वायरस की दवा जल्द से जल्द बना ली जाए।

दिल्ली सरकार की ओर से कोरोना वायरस की समस्या से निपटने के लिए बनाई गई कार्ययोजना समिति के अध्यक्ष और यकृत एवं पित्त विज्ञान संस्थान (आईएलबीएस) के निदेशक डॉ एस के सरीन का कहना है कि ये वायरस तेज़ी से अपना आकार बदल रहा है ऐसे में इसका इलाज और इसके लिए दवा बनाना आसान नहीं है। दूसरी दवाएं इस पर असर कर रही हैं लेकिन वो सटीक नहीं हैं। हेल्थकेयर वर्कर्स को हाइड्रॉक्सी क्लोरोक्वीन दी जा रही है, कुछ हद तक इसका इस्तेमाल किया जा रहा है ताकि उन्हें संक्रमण से दूर रखा जा सके। लेकिन अगर सटीक इलाज की बात करें तो अब तक कुछ नहीं है। उन्होंने कहा कि एंटी-वायरल, एंटी बायोटिक्स के ज़रिए लोगों का इलाज किया जा रहा है। ख़ासकर वो लोग जो आईसीयू में भर्ती हैं। लेकिन जो लोग अपने आप ठीक हो रहे हैं वो इम्युनिटी की वजह से हो रहे हैं।

नई दवा बनाने की ज़रूरत को लेकर उठ रहे सवालों पर डॉ सरीन कहते हैं कि लोग ठीक होने वालों का आंकड़ा देख रहे हैं लेकिन मरने वालों का आंकड़ा शायद नज़रअंदाज़ कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि दवाओं को लेकर ट्रायल चल रहे हैं। इबोला के इलाज के लिए इस्तेमाल होने वाली दवा को लेकर भी ट्रायल चल रहा है कि क्या ये कारगर हो सकती है। मेरी समझ में अभी हमें बहुत काम करने की ज़रूरत है। भारत में बढ़ते मामलों पर डॉ एस के सरीन का कहना है कि बाकी दुनिया के मुक़ाबले भारत में अभी कोरोना संक्रमण के मामलों की शुरुआत हुई है और आने वाले कुछ हफ़्तों में मामले बढ़ सकते हैं।