विधि पूर्वक रखें शुक्र प्रदोष व्रत, मिलेगा शिव का आशीर्वाद

आज माघ शुक्ल तेरस हैं और आज प्रदोष व्रत हैं। शुक्रवार को आने वाले प्रदोष व्रत को शुक्र प्रदोष व्रत या भुगुवारा प्रदोष व्रत के नाम से जाना जाता हैं। आज के दिन की गई भगवान शिव की भक्ति आपके जीवन में सक्रत्मकता लाते हुए सफलता दिलाती हैं। इसका पूर्ण लाभ पाने के लिए जरूरी हैं कि व्रत रखते हुए पूर्ण विधि के साथ पूजन किया जाए। इसलिए आज हम आपको बताने जा रहे हैं शुक्र प्रदोष व्रत की पूर्ण पूजन विधि के बारे में।

शुक्र प्रदोष व्रत के दिन व्रती को प्रात:काल उठकर नित्य क्रम से निवृत हो स्नान कर शिव जी का पूजन करना चाहिये। पूरे दिन मन ही मन “ऊँ नम: शिवाय ” का जप करें। पूरे दिन निराहार रहें। त्रयोदशी के दिन प्रदोष काल में यानी सुर्यास्त से तीन घड़ी पूर्व, शिव जी का पूजन करना चाहिये। शुक्र प्रदोष व्रत की पूजा शाम 4:30 बजे से लेकर शाम 7:00 बजे के बीच की जाती है।

व्रती को चाहिये की शाम को दुबारा स्नान कर स्वच्छ श्वेत वस्त्र धारण कर लें। पूजा स्थल अथवा पूजा गृह को शुद्ध कर लें। यदि व्रती चाहे तो शिव मंदिर में भी जा कर पूजा कर सकते हैं। पांच रंगों से रंगोली बनाकर मंडप तैयार करें। पूजन की सभी सामग्री एकत्रित कर लें। कलश अथवा लोटे में शुद्ध जल भर लें। कुश के आसन पर बैठ कर शिव जी की पूजा विधि-विधान से करें। “ऊँ नम: शिवाय ” कहते हुए शिव जी को जल अर्पित करें। इसके बाद दोनों हाथ जो‌ड़कर शिव जी का ध्यान करें।

ध्यान का स्वरूप- करोड़ों चंद्रमा के समान कांतिवान, त्रिनेत्रधारी, मस्तक पर चंद्रमा का आभूषण धारण करने वाले पिंगलवर्ण के जटाजूटधारी, नीले कण्ठ तथा अनेक रुद्राक्ष मालाओं से सुशोभित, वरदहस्त, त्रिशूलधारी, नागों के कुण्डल पहने, व्याघ्र चर्म धारण किये हुए, रत्नजड़ित सिंहासन पर विराजमान शिव जी हमारे सारे कष्टों को दूर कर सुख समृद्धि प्रदान करें।

ध्यान के बाद, शुक्र प्रदोष व्रत की कथा सुने अथवा सुनायें। कथा समाप्ति के बाद हवन सामग्री मिलाकर 11 या 21 या 108 बार “ऊँ ह्रीं क्लीं नम: शिवाय स्वाहा ” मंत्र से आहुति दें। उसके बाद शिव जी की आरती करें। उपस्थित जनों को आरती दें। सभी को प्रसाद वितरित करें। उसके बाद भोजन करें। भोजन में केवल मीठी सामग्रियों का उपयोग करें।