नारद मुनि के लिए स्वर्ग के दरवाजे बंद करने के बाद हुआ कुछ ऐसा कि देवताओं को मांगनी पड़ी माफ़ी

ब्रह्माजी के पुत्र नारद मुनि को ज्ञान और बुद्धि के कारण देवता, असुर और ऋषि सभी सम्मान करते थे। नारद मुनि ही थे जो किसी भी जानकारी को एक स्थान से दूसरे स्थान तक पहुंचाने का काम करते थे। अपने चंचल स्वभाव के चलते नारद मुनि देवताओं के पास जाना हो या फिर असुरों के कहीं भी पहुंच जाते थे। स्वर्ग लोक में बिना बुलाए बार-बार आ जाने पर देवताओं को परेशानी होने लगी। सभी देवताओं ने मिलकर योजना बनाई और स्वर्ग के द्वारपाल को आदेश दिया कि नारदमुनि स्वर्ग लोक में प्रवेश न करें और उनको कोई बहाना बनाकर टाल दें।

नारदमुनि स्वर्ग लोक पहुंचे तो द्वारपाल ने उनको रोका और अंदर जाने के लिए मना कर दिया। अगले दिन नारदजी भगवान शिव से मिलने कैलाश पहुंचे तब नंदी ने भी उनको रोक दिया और उनसे कहा कि भगवान शिव ध्यानमुद्रा में हैं इसलिए आप कहीं दूसरी जगह जाकर वीणा बजाएं। स्वर्गलोक के बाद कैलाश पर्वत पर हुए उनके साथ इस तरह के व्यवहार से उनको क्रोध आ गया। वह वहां से सीधे भगवान विष्णु से मिलने क्षीर सागर पहुंचे लेकिन वहां भी पंक्षीराज गरुड़ उनको अंदर आने से मना कर दिया। इस तरह वह सभी देवताओं के पास गए लेकिन उनको स्वर्ग लोक में अंदर नहीं आने दिया गया।

नारद मुनि को समझ में नहीं आ रहा था आखिर उनके साथ इस तरह का व्यवहार क्यों किया जा रहा है और वह अपने अपमान का बदला किस तरह लें। इधर-उधर घूमते हुए वह सीधे काशी पहुंचे और एक तपस्वी ऋषि से मिले। नारदमुनि ने अपने अपमान के बारे में ऋषि को बता दिया। तब ऋषि ने उनको देवताओं की दिए हुए तीन पाषण नारद मुनि के दे दिए।

ऋषि ने नारद मुनि से कहा कि हर पाषण से आप अपने लिए कोई भी मनोकामना पूरी कर सकते हैं। नारदमुनि उन पाषण को लेकर चल गए। तभी उनको एक नगर में बच्चा रोते हुए सुनाई दी। उन्हें पता चला कि उस बच्चे के पिता की मृत्यु हो गई है और अब कौन उसका भरण-पोषण करेगा। तभी नारदजी ने अपने एक पाषण का प्रयोग किया और बच्चे के पिता को जीवनदान दिया।

आगे बढ़ने पर नारदमुनि को एक भिखारी दिखाई दिया, जो अपने कोढ़ को रोग से बहुत दुखी था। उसने नारदमुनि से अपने रोग को सही करने के लिए कहा। तब नारदमुनि ने पाषाण का प्रयोग करके भिखारी के रोग को खत्म कर दिया। अब उनके पास केवल एक ही पाषाण बचा था। उन्होंने अपने अंतीम पाषाण से कामना की कि उनके सभी पाषाण फिर से उनको मिल जाएं।

इसके बाद नारद मुनि अपने पाषाणों से लोगों की इच्छाएं पूरी करने लगे, जिससे सृष्टि के चक्र में बाधाएं आने लगीं। इससे सभी देवता परेशान हो गए और अपनी गलती का अहसास होने लगा और उनको सूचनाएं भी मिलना बंद हो गईं। तब सभी देवताओं ने वरुण और वायुदेव से नारदजी को वापस स्वर्ग लोक लाने के लिए भेजा। वरुण और वायुदेव को नारदजी गंगा किनारे मिले और उनसे सभी देवताओं की ओर से माफी मांगी और स्वर्ग लोक में प्रवेश करने दिया। नारदजी ने क्रोध को भूलकर उन पाषाणों के गंगा में ही फेंक दिया।