Bakrid 2019: केवल बकरे की ही कुर्बानी क्यों दी जाती हैं आज, शेर या चीता क्यों नहीं

मुस्लिम सम्प्रदाय द्वारा साल में दो बार ईद का त्यौंहार मनाया जाता हैं। इनमें से एक तो होती है मीठी ईद और दूसरी होती हैं बकरा ईद। आज बकरीद हैं जो कि रमजान महीने के 70 दिन बाद आती हैं। बकरीद का त्यौंहार समाज की भलाई के लिए कुर्बानी का सन्देश देता हैं। इसलिए आज के दिन नमाज अदा करने के बाद बकरे की कुर्बानी दी जाती है। लेकिन क्या आप जानते है कि आखिर क्यों केवल बकरे की ही कुर्बानी दी जाती हैं किसी ओर जानवर की क्यों नहीं। तो आइये जानते हैं इसके बारे में।

हलाल जानवरों की क़ुरबानी है जायज़
बकरीद पर किन जानवरों की कुर्बानी की जा सकती है यह जानने से पहले इस बात की तस्दीक कर लेना होगा कि कौन से जानवर या परिंदे इस्लाम में हराम हैं और कौन से हलाल, जिन्हें खाए जाने की अनुमति है।आपको बतादे कि इस्लाम में वो चैपाए जानवर हराम किये गए हैं, जिनके पंजे होते हैं और जो आदमखोर या गोश्तखोर यानि मांसाहारी होते हैं। मिसाल के तौर पर शेर, लोमड़ी, सियार और चीता वगैरह। इसके अलावा गैर मांसाहारी चैपायों में भी वही जानवर हलाल करार दिये गए हैं जिनके खुर फटे हुए हों। मिसाल के तौर पर बकरा, ऊंट आदि।

शिकार करने वाले जानवर खाना है हराम
आपको बता दें कि इस्लाम में उन परिन्दों को भी खाए जाने की इजाजत नहीं है जो शिकार कर अपना पेट भरते हैं और पंजों का भी इस्तेमाल करते हैं।रही बात बकरीद के मौके पर कुर्बानी की तो मांसाहारी यानि गोश्तखोर जानवर तो हलाल हैं ही नहीं इसलिये उनकी बात करना बेमानी है। इसके अलावा ऐसे जानवर जो हलाल तो हैं पर वह जंगली हैं उनकी भी कुर्बानी नहीं की जा सकती। ऊंट, दुम्बा, बकरा जैसे पालतू चैपायों की ही कुर्बानी बकरीद के मौके पर दी जा सकती है।