आखिर क्यों किया जाता हैं गया में श्राद्ध, ये है 5 बड़ी वजह

श्राद्ध पक्ष का समय चल रहा हैं और सभी अपने पूर्वजों का पूर्ण आस्था के साथ श्राद्ध करते हैं। श्राद्ध करने के लिए कई जगहों को विशेष माना जाता हैं जिनमें से एक हैं पवित्र फल्गु नदी के तट पर बसा प्राचीन गया शहर। गया शहर पितृपक्ष और पिंडदान के लिए अपनी विशेष पहचान रखता हैं। लेकिन क्या आप जानते हैं कि आखिर गया में किया श्राद्ध का इतना महत्व क्यों माना जाता हैं। तो आइये आज हम बताते हैं आपको इसके पीछे की बड़ी वजहें।

- कहते हैं कि गया वह आता है जिसे अपने पितरों को मुक्त करना होता है। लोग यहां अपने पितरों या मृतकों की आत्मा को हमेशा के लिए छोड़कर चले जाता है। मतलब यह कि प्रथा के अनुसार सबसे पहले किसी भी मृतक तो तीसरे वर्ष श्राद्ध में लिया जाता है और फिर बाद में उसे हमेशा के लिए जब गया छोड़ दिया जाता है तो फिर उसके नाम का श्राद्ध नहीं किया जाता है।कहते हैं कि गया में श्राद्ध करने के उपरांत अंतिम श्राद्ध बदरीका क्षेत्र के 'ब्रह्मकपाली' में किया जाता है।

- गया क्षेत्र में भगवान विष्णु पितृदेवता के रूप में विराजमान रहते हैं। भगवान विष्णु मुक्ति देने के लिए 'गदाधर' के रूप में गया में स्थित हैं। गयासुर के विशुद्ध देह में ब्रह्मा, जनार्दन, शिव तथा प्रपितामह स्थित हैं। अत: पिंडदान के लिए गया सबसे उत्तम स्थान है।

- गयासुर (gayasur) नामक असुर ने कठिन तपस्या कर ब्रह्माजी से वरदान मांगा था कि उसका शरीर देवताओं की तरह पवित्र हो जाए और लोग उसके दर्शन मात्र से पापमुक्त हो जाएं। इस वरदान के चलते लोग भयमुक्त होकर पाप करने लगे और गयासुर के दर्शन करके फिर से पापमुक्त हो जाते थे। इससे बचने के लिए यज्ञ करने के लिए देवताओं ने गयासुर से पवित्र स्थान (place) की मांग की। गयासुर ने अपना शरीर देवताओं को यज्ञ के लिए दे दिया। जब गयासुर लेटा तो उसका शरीर पांच कोस में फैल गया। यही पांच कोस जगह आगे चलकर गया बना।

- देह दान देने के बाद गयासुर के मन से लोगों को पाप मुक्त करने की इच्छा नहीं गई और फिर उसने देवताओं से वरदान मांगा कि यह स्थान लोगों को तारने वाला बना रहे। तब से ही यह स्थान मृतकों के लिए श्राद्ध कर्म कर मुक्ति का स्थान बन गया।

- पुराणों अनुसार ब्रह्मज्ञान, गयाश्राद्ध, गोशाला में मृत्यु तथा कुरुक्षेत्र में निवास- ये चारों मुक्ति के साधन हैं- गया में श्राद्ध करने से ब्रह्महत्या, सुरापान, स्वर्ण की चोरी, गुरुपत्नीगमन और उक्त संसर्ग-जनित सभी महापातक नष्ट हो जाते हैं।