आप सभी को पता ही हैं कि मार्च एक इस महीने में 9 मार्च को होली का पावन पर्व हैं। होली से पहले के आठ दिन फाल्गुन शुक्ल पक्ष की अष्टमी से लेकर आठवें दिन यानी होलिका दहन तक होलाष्टक का समयकाल होता हैं। इस वर्ष होलाष्टक 02 मार्च से प्रारंभ हो रहा है, जो 09 मार्च यानी होलिका दहन तक रहेगा। होलाष्टक से जुड़ी कई पौराणिक मान्यताएं हैं और इन दिनों में कोई भी शुभकार्य करना वर्जित माना जाता हैं। क्या आप जानते हैं कि आखिर होलाष्टक के दिन अशुभ क्यों माने जाते हैं। तो आइये जानते हैं होलाष्टक के बारे में सबकुछ।
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क्या है होलाष्टक?होलाष्टक का आशय है होली के पूर्व के आठ दिन हैं, जिसे होलाष्टक कहते हैं। धर्मशास्त्रों में वर्णित 16 संस्कार जैसे- गर्भाधान, विवाह, पुंसवन (गर्भाधान के तीसरे माह किया जाने वाला संस्कार), नामकरण, चूड़ाकरण, विद्यारंभ, गृह प्रवेश, गृह निर्माण, गृह शांति, हवन-यज्ञ कर्म आदि नहीं किए जाते। इन दिनों शुरु किए गए कार्यों से कष्ट की प्राप्ति होती है। इन दिनों हुए विवाह से रिश्तों में अस्थिरता आजीवन बनी रहती है अथवा टूट जाती है। घर में नकारात्मकता, अशांति, दुःख एवं क्लेष का वातावरण रहता है।
होलाष्टक की परंपरा
जिस दिन से होलाष्टक प्रारंभ होता है, गली मोहल्लों के चौराहों पर जहां-जहां परंपरा स्वरूप होलिका दहन मनाया जाता है, उस जगह पर गंगाजल का छिड़काव कर प्रतीक स्वरूप दो डंडों को स्थापित किया जाता है। एक डंडा होलिका का एवं दूसरा भक्त प्रह्लाद का माना जाता है। इसके पश्चात यहां सूखी लकड़ियां और उपले लगाए जाने लगते हैं। जिन्हें होली के दिन जलाया जाता है, जिसे होलिका दहन कहा जाता है।
क्यों होते हैं ये दिन अशुभ?
ज्योतिष शास्त्र के अनुसार होलाष्टक के प्रथम दिन अर्थात फाल्गुन शुक्लपक्ष की अष्टमी को चंद्रमा, नवमी को सूर्य, दशमी को शनि, एकादशी को शुक्र, द्वादशी को गुरु, त्रयोदशी को बुध, चतुर्दशी को मंगल तथा पूर्णिमा को राहु का उग्र रूप रहता है। इस वजह से इन आठों दिन मानव मस्तिष्क तमाम विकारों, शंकाओं और दुविधाओं आदि से घिरा रहता है, जिसकी वजह से शुरु किए गए कार्य के बनने के बजाय बिगड़ने की संभावना ज्यादा रहती है। चैत्र कृष्ण प्रतिपदा को इन आठों ग्रहों की नकारात्मक शक्तियों के कमजोर होने की खुशी में लोग अबीर-गुलाल आदि छिड़ककर खुशियां मनाते हैं। जिसे होली कहते हैं।