श्राद्ध के भोजन में बर्तनों का भी विशेष महत्व, जानें और पाएं लाभ

श्राद्ध पक्ष का हिन्दू धर्म में बहुत महत्व माना जाता हैं। शास्त्रों और पुराणों में इन दिनों को पितरों के पूजन के लिए जाना जाता हैं और इससे जुड़े कुछ नियम बताए गए हैं। इन नियमों में की गई गलतियां आपके जीवन पर उल्टा प्रभाव भी डाल सकती हैं। श्राद्ध के दौरान भोजन किन बर्तनों में किया जाए इससे जुड़े भी कई नियम होते हैं। हर बर्तन का अपना विशेष प्रभाव होता हैं जो विशेह्स फल प्रदान करता हैं। तो आइये जानते हैं श्राद्ध के भोजन में इस्तेमाल किये जाने वाले बर्तनों के बारे में।

- सोने, चांदी, कांसे और तांबे के बर्तन भोजन के लिए सर्वोत्तम हैं।
- चांदी के बर्तन में तर्पण करने से राक्षसों का नाश होता है।
- पितृ, चांदी के बर्तन से किए तर्पण से तृप्त होते हैं।
- चांदी के बर्तन में भोजन कराने से पुण्य अक्षय होता है।
- श्राद्ध और तर्पण में लोहे और स्टील के बर्तन का प्रयोग न करें।
- केले के पत्ते पर श्राद्ध का भोजन नहीं कराना चाहिए। शास्त्रों में लिखा है कि इससे पितरों को तृप्ति नहीं मिलती।

श्राद्ध में इन नियमों का भी करें पालन

- पितरों के निमित्त सारी क्रियाएं गले में दाएं कंधे मे जनेउ डाल कर और दक्षिण की ओर मुख करके की जाती है।
- श्राद्ध का समय हमेशा जब सूर्य की छाया पैरों पर पड़ने लग जाए तब उचित होता है, अर्थात दोपहर के बाद ही शास्त्र सम्मत है। सुबह-सुबह अथवा 12 बजे से पहले किया गया श्राद्ध पितरों तक नहीं पहुंचता है। ऐसे में पितर नाराज हो सकते हैं।
- श्राद्ध के दिन लहसुन, प्याज रहित सात्विक भोजन ही घर की रसोई में बनना चाहिए।
- उड़द की दाल, बडे, चावल, दूध, घी से बने पकवान, खीर, मौसमी सब्जी जैसे तोरई, लौकी, सीतफल, भिण्डी कच्चे केले की सब्जी ही भोजन में मान्य है।
- आलू, मूली, बैंगन, अरबी तथा जमीन के नीचे पैदा होने वाली सब्जियां पितरों को नहीं चढ़ती है।
- श्राद्ध के नाम पर सुबह-सुबह हलवा- पूरी बनाकर मन्दिर में और पंडित को देने से श्राद्ध का फर्ज पूरा नहीं होता है। ऐसे श्राद्धकर्ता को उसके पितृगण कोसते हैं क्योंकि उस थाली को पंडित भी नहीं खाता है बल्कि कूड़ेदान में फेंक देता है। जहां सूअर, आवारा कुत्ते आदि उसे खाते हैं।