गणेश जी को समर्पित है संकट चौथ का उपवास, जानें इसकी व्रत-कथा के बारे में

आज माघ महीने के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि है जिसे संकट चतुर्थी या तिल चौथ के रूप में भी जाना जाता हैं। आज के दिन सभी महिलाऐं अपनी संतान कि दीर्घायु के लिए व्रत रखती हैं चंद्रोदय के बाद ही व्रत खोलती हैं। पुराणों में स व्रत का बड़ा महत्व माना जाता हैं और मान्यता है कि आज के दिन की गई गणपति जी कि पूजा विशेष फल प्रदान करती हैं। इस व्रत के महत्व को देखते हुए, आज हम आपको संकट चौथ के इस व्रत कि कथा के बारे में बताने जा रहे हैं। तो आइये जानते है इस कथा के बारे में।

सत्ययुग में महाराज हरिश्चंद्र के नगर में एक कुम्हार रहता था। एक बार उसने बर्तन बनाकर आंवा लगाया, पर आवां पका ही नहीं। बार-बार बर्तन कच्चे रह गए। बार-बार नुकसान होते देख उसने एक तांत्रिक से पूछा, तो उसने कहा कि बलि से ही तुम्हारा काम बनेगा। तब उसने तपस्वी ऋषि शर्मा की मृत्यु से बेसहारा हुए उनके पुत्र की सकट चौथ के दिन बलि दे दी।

उस लड़के की माता ने उस दिन गणेश पूजा की थी। बहुत तलाशने पर जब पुत्र नहीं मिला, तो मां ने भगवान गणेश से प्रार्थना की। सवेरे कुम्हार ने देखा कि वृद्धा का पुत्र तो जीवित था। डर कर कुम्हार ने राजा के सामने अपना पाप स्वीकार किया। राजा ने वृद्धा से इस चमत्कार का रहस्य पूछा, तो उसने गणेश पूजा के विषय में बताया। तब राजा ने सकट चौथ की महिमा को मानते हुए पूरे नगर में गणेश पूजा करने का आदेश दिया। कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को संकट हारिणी माना जाता है।