यमराज को लौटाने पड़े थे सावित्री के पति के प्राण, जानें वट पूर्णिमा व्रत कथा

हर साल ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा तिथि को वट पूर्णिमा व्रत रखा जाता हैं। इस साल यह व्रत आज अर्थात 5 जून को रखा जाना हैं। आज के दिन सुहागन महिलाएं वट यानी बरगद के वृक्ष की पूजा करती हैं जिसमें ब्रह्मा, विष्णु और महेश तीनों देवताओं का वास होता है। यह व्रत सुहाग की सुरक्षा और संतान सुख की प्राप्ति के लिए रखा जाता हैं। आज इस कड़ी में हम आपको वट पूर्णिमा व्रत की कथा के बारे में बताने जा रहे हैं। तो आइये जानते हैं इसके बारे में।

कथा के अनुसार, मद्र देश के राजा अश्वपति ने अपनी पत्नी के साथ संतान प्राप्ति के लिए सावित्री देवी का विधिपूर्वक व्रत तथा पूजन किया था। व्रत के फल के रूप में राजा को पुत्री सावित्री की प्राप्त हुई। राजा के महल में सावित्री धीरे-धीरे बढ़ने लगी और विवाह के योग्य हो गई। एक दिन अश्वपति ने मंत्री के साथ सावित्री को वर चुनने के लिए भेजा। सावित्री ने अपने सत्यवान को वर रूप में चुना और राजा को बता दिया। उसी समय देवर्षि नारद ने राजा को बताया कि महाराज द्युमत्सेन के पुत्र सत्यवान की शादी के 12 साल बाद मृत्यु हो जाएगी। इसे सुनकर राजा ने सावित्री से किसी दूसरे वर को चुनने के लिए कहा मगर सावित्री नहीं मानी। नारदजी से सत्यवान की मृत्यु का समय ज्ञात करने के बाद भी वह पति व सास-ससुर के साथ जंगल में रहने लगीं।

इसके बाद नारदजी के बताए समय के कुछ दिनों पूर्व से ही सावित्री ने व्रत रखना शुरू कर दिया। जब यमराज उनके पति सत्यवान को साथ लेने आए तो सावित्री भी उनके पीछे चल दीं। इस पर यमराज ने उनकी धर्मनिष्ठा से प्रसन्न होकर वर मांगने के लिए कहा तो उन्होंने सबसे पहले अपने नेत्रहीन सास-ससुर के आंखों की ज्योति और दीर्घायु की कामना की। फिर भी सावित्री को पीछे आता देख दूसरे वर में उन्हें यह वरदान दिया कि उनके ससुर का खोया राज्यपाठ वापस मिल जाएगा। आखिर में सावित्री ने सौ पुत्रों का वरदान मांगा। चतुराई पूर्वक मांगे गए वरदान के जाल में फंसकर यमराज को सावित्री के पति सत्यवान के प्राण वापस करने पड़े। यमदेव ने चने के रूप में सत्यवान के प्राण लौटाए थे। इसलिए प्राण रूप में वटसावित्री व्रत में चने का प्रसाद अर्पित किया जाता है।