नारदपुराण के अनुसार उमा-महेश्वर व्रत Uma Maheshwar vrat भाद्रपद की पूर्णिमा के दिन मनाया जाता है। इस बार भाद्रपद पूर्णिमा 24 सितम्बर को मनाई जा रही हैं। इस दिन सत्यनारायण व्रत के साथ ही उमा-महेश्वर का व्रत भी रखा जाता है। इस व्रत को स्त्रियों के लिए बहुत विशेष माना जाता हैं और इस व्रत के फल के रूप में बुद्धिमान संतान और सौभाग्य की प्राप्ति होती हैं। इसलिए आज हम आपको उमा-महेश्वर व्रत की कथा के बारे में बताने जा रहे हैं, जो आपको शुभ फल प्रदान करवाएगी। तो आइये जानते हैं उमा-महेश्वर व्रत की कथा के बारे में।
इस व्रत का उल्लेख मत्स्य पुराण में मिलता है। कहा जाता है कि एक बार महर्षि दुर्वासा भगवान शंकर के दर्शन करके लौट रहे थे। रास्ते में उनकी भेंट भगवान विष्णु से हो गई। महर्षिने शंकर जी द्वारा दी गई विल्व पत्र की माला भगवान विष्णु को दे दी। भगवान विष्णु ने उस माला को स्वयं न पहनकर गरुड़ के गले में डाल दी। इससे महर्षि दुर्वासा क्रोधित होकर बोले कि ‘तुमने भगवान शंकर का अपमान किया है। इससे तुम्हारी लक्ष्मी चली जाएगी। क्षीर सागर से भी तुम्हे हाथ धोना पड़ेगा और शेषनाग भी तुम्हारी सहायता न कर सकेंगे।’ यह सुनकर भगवान विष्णु ने महर्षि दुर्वासा को प्रणाम कर मुक्त होने का उपाय पूछा। इस पर महर्षि दुर्वासा ने बताया कि उमा-महेश्वर का व्रत करो, तभी तुम्हें ये वस्तुएँ मिलेंगी। तब भगवान विष्णु ने यह व्रत किया और इसके प्रभाव से लक्ष्मी जी समेत समस्त शक्तियाँ भगवान विष्णु को पुनः मिल गईं।