चैत्र की नवरात्री के नौ दिनों का अपना विशेष महत्व हैं। प्रतिपदा के दिन घर के मंदिर में घट स्थापना की जाती हैं जिसकी पूजा अष्टमी और नवमी की विशेष होती हैं। इस हिन्दू साल का पहला दिन घट स्थापना (कलश या छोटा मटका) से आरंभ होता है। घट स्थापना के समय भी कई चीजों का ध्यान रखने की आवश्यकता होती हैं जो कि शुभ फलदायक होते हैं। हमें इन नियमों का ध्यान रखकर ही घट स्थापना करनी चाहिए। तो आइये हम बताते हैं आपको घट स्थापना के समय ध्यान रखने योग्य उन नियमों के बारे में।
* ईशान कोण (उत्तर-पूर्व) देवताओं की दिशा माना गया है। इसी दिशा में माता की प्रतिमा तथा घट स्थापना करना उचित रहता है।
* माता प्रतिमा के सामने अखंड ज्योत जलाएं तो उसे आग्नेय कोण (पूर्व-दक्षिण) में रखें। पूजा करते समय मुंह पूर्व या उत्तर दिशा में रखें।
* घट स्थापना चंदन की लकड़ी पर करें तो शुभ होता है। पूजा स्थल के आस-पास गंदगी नहीं होनी चाहिए।
* पूजा स्थल के सामने थोड़ा स्थान खुला होना चाहिए, जहां बैठकर ध्यान व पाठ आदि किया जा सके।
* घट स्थापना स्थल के आस-पास शौचालय या बाथरूम नहीं होना चाहिए। पूजा स्थल के ऊपर यदि टांड हो तो उसे साफ़-सुथरी रखें।
* देवी को लाल रंग के वस्त्र, रोली, लाल चंदन, सिन्दूर, लाल साड़ी, लाल चुनरी, आभूषण तथा खाने-पीने के सभी पदार्थ जो लाल रंग के होते हैं, वही अर्पित किए जाते हैं।
* घटस्थापना के लिए दुर्गाजी की स्वर्ण अथवा चांदी की मूर्ति या ताम्र मूर्ति उत्तम है। अगर ये भी उपलब्ध न हो सके तो मिट्टी की मूर्ति अवश्य होनी चाहिए जिसको रंग आदि से चित्रित किया गया हो।
* घटस्थापन के स्थान पर केले का खंभा, घर के दरवाजे पर बंदनवार के लिए आम के पत्ते, तांबे या मिट्टी का एक घड़ा, चंदन की लकड़ी, हल्दी की गांठ, 5 प्रकार के रत्न रखें। दिव्य आभूषण देवी को स्नान के उपरांत पहनाने चाहिए।