Diwali 2021 : महाभारत के दौरान भी उपस्थित थे रामायण के ये 5 पौराणिक पात्र, आइये जानें

आने वाले दिनों में दिवाली का त्यौहार मनाया जाना हैं जो बुराई पर अच्छाई की जीत का संकेत देता हैं। प्रभु श्रीराम की जीवनी का पूरा वृत्तांत रामायण में मिलता हैं। रामायण काल में कई ऐसे पौराणिक पात्र हैं जिनका महत्वपूर्ण योगदान रहा हैं। हर पात्र से जुड़ी अपनी एक विशेष जीवनी रही। लेकिन क्या आप जानते हैं कि रामायण के कई ऐसे पौराणिक पात्र हैं जो महाभारत के दौरान भी उपस्थित थे। आज इस कड़ी में हम आपको उन्हीं महत्वपूर्ण पात्रों की जानकारी देने जा रहे हैं।

हनुमान

रामायण में प्रमुख भूमिका निभाने वाले भगवान हनुमान महाभारत में महाबली भीम से पांडव के वनवास के समय मिले थे। कई जगह तो यह भी कहा गया है कि भीम और हनुमान दोनों भाई हैं क्योंकि भीम और हनुमान दोनी ही पवन देव के पुत्र थे।

परशुराम

अपने समय के सबसे बड़े ज्ञानी परशुराम को कौन नहीं जानता। माना जाता है कि परशुराम ने 21 बार क्षत्रियों को पृथ्वी से नष्ट कर दिया था। रामायण में उनका वर्णन तब आता है जब राम सीता के स्वंयवर में शिव का धनुष तोड़ते है जबकि महाभारत में वो भीष्म के गुरु बनते है तथा एक वक़्त भीष्म के साथ भयंकर युद्ध भी करते है। इसके अलावा वो महाभारत में कर्ण को भी ज्ञान देते है।

जाम्बवन्त

रामायण में जाम्बवन्त का वर्णन राम के प्रमुख सहयोगी के रूप में मिलता है। जाम्बवन्त ही राम सेतु के निर्माण में प्रमुख भूमिका निभाते है। जबकि महाभारत में जाम्बवन्त, भगवान श्री कृष्ण के साथ युद्ध करते है तथा यह पता पड़ने पर की वो एक विष्णु अवतार है, अपनी बेटी जामवंती का विवाह श्री कृष्ण के साथ कर देते है।

मयासुर

बहुत ही कम लोगों को मालूम होगा की रावण के ससुर यानी मंदोदरी के पिता मयासुर एक ज्योतिष तथा वास्तुशास्त्र थे। इन्होंने ही महाभारत में युधिष्ठिर के लिए सभाभवन का निर्माण किया जो मयसभा के नाम से प्रसिद्ध हुआ। इसी सभा के वैभव को देखकर दुर्योधन पांडवों से ईर्षा करने लगा था और कहीं न कहीं यही ईर्षा महाभारत में युद्ध का कारण बनी।

महर्षि दुर्वासा

हिंदुओं के एक महान ऋषि महर्षि दुर्वासा रामायण में एक बहुत ही बड़े भविष्यवक्ता थे। इन्होंने ही रघुवंश के भविष्य सम्बंधी बहुत सारी बातें राजा दशरथ को बताई थी। वहीं दूसरी तरफ महाभारत में भी पांडव के निर्वासन के समय महर्षि दुर्वासा द्रोपदी की परीक्षा लेने के लिए अपने दस हजार शिष्यों के साथ उनकी कुटिया में पंहुचें थे।