बुद्ध पूर्णिमा 2020 : इन 4 घटनाओं ने बदल दिया सिद्धार्थ का जीवन

आने वाले दिनों में बुद्ध पूर्णिमा का पावन पर्व आने वाला हैं जो कि बुद्ध जयंती के रूप में मनाया जाता हैं। भगवान बुद्ध का जीवन बेहद प्रेरणादायक हैं जो कि सामान्य जीव को जीवन जीने की नई राह दिखाता हैं। गौतम बुद्ध के बचपन का नाम सिद्धार्थ था। वे एक संपन्न परिवार से आते थे। लेकिन सवाल उठता हैं कि ऐसा क्यों हुआ जिसने उनका जीवन बदल दिया। आज हम आपको सिद्धार्थ के जीवन की 4 ऐसी घटनाओं के बारे में बताने जा रहे हैं जिसने उनका जीने का नजरिया बदला।

- वसंत ऋतु में एक दिन सिद्धार्थ बगीचे की सैर पर निकले। उन्हें सड़क पर एक बूढ़ा आदमी दिखाई दिया। उसके दांत टूट हुए थे। बाल पक गए थे, शरीर टेढ़ा-मेढ़ा हो गया था। हाथ में लाठी पकड़े धीरे-धीरे कांपता हुआ वह सड़क पर चल रहा था।

- दूसरी बार सिद्धार्थ कुमार जब बगीचे की सैर पर निकले, तो उनकी आंखों के आगे एक रोगी आ गया। उसकी सांस तेजी से चल रही थी। कंधे ढीले पड़ गए थे। बांहें सूख गई थीं। पेट फूल गया था। चेहरा पीला पड़ गया था। दूसरे के सहारे वह बड़ी मुश्किल से चल पा रहा था।

- तीसरी बार सिद्धार्थ को एक अर्थी मिली। चार आदमी उसे उठाकर लिए जा रहे थे। पीछे-पीछे बहुत से लोग थे। कोई रो रहा था, कोई छाती पीट रहा था, कोई अपने बाल नोच रहा था। इन दृश्यों ने सिद्धार्थ को बहुत विचलित किया।

- चौथी बार सिद्धार्थ बगीचे की सैर को निकला, तो उसे एक संन्यासी दिखाई पड़ा। संसार की सारी भावनाओं और कामनाओं से मुक्त प्रसन्नचित्त संन्यासी ने सिद्धार्थ को आकृष्ट किया।

उन्होंने सोचा- ‘धिक्कार है जवानी को, जो जीवन को सोख लेती है। धिक्कार है स्वास्थ्य को, जो शरीर को नष्ट कर देता है। धिक्कार है जीवन को, जो इतनी जल्दी अपना अध्याय पूरा कर देता है। क्या बुढ़ापा, बीमारी और मौत सदा इसी तरह होती रहेगी सौम्य? उन्हें प्रसन्नचित्त संन्यासी ने आकृष्ट किया और वे संसार के मोह-बंधन से मुक्त होकर त्याग के रास्ते पर निकल गए और घोर तपस्या करके बुद्धत्व को प्राप्त किया।