सतयुग में हनुमान जन्म का अदभुत रहस्य, शायद ही जानते होंगे आप

दिवाली का त्योहार भगवान श्रीराम के लिए जाना जाता हैं, लेकिन इसी के साथ ही इसी काल में भगवान शिव ने हनुमान का अवतार लिया था और श्रीराम का साथ दिया था। यह तो सभी जानते है कि हनुमान जी त्रेतायुग में अन्जना और केशरी के यहाँ पुत्र रूप में अवतरित हुए। लेकिन क्या आप हनुमान जन्म के पीछे का रहस्य जानते है। तो चलिए, आज हम बताते हैं आपको इससे जुड़े रहस्य के बारे में।

एक समय सृष्टि से जल तत्व अदृश्य हो गया ।सृष्टि में त्राहि-त्राहि मच गयीऔर जीवन का अंत होने लगा तब व्रम्हा जी विष्णु जी ऋषि गण तथा देवता मिलकर श्री शिव जी के शरण में गए और शिव जी से प्रार्थना की और बोले नाथों के नाथ आदिनाथ अब इस समस्या से आप ही निपटें। श्रृष्टि में पुन: जल तत्व कैसे आयेगा।

देवों की विनती सुन कर भोलेनाथ ने ग्यारहों रुद्रों को बुलाकर पूछा आप में से कोई ऐसा है जो सृष्टि को पुनः जल तत्व प्रदान कर सके। दस रूदों ने इनकार कर दिया। ग्यारहवाँ रुद्र जिसका नाम हर था उसने कहा मेरे करतल में जल तत्व का पूर्ण निवास है।


मैं श्रृष्टि को पुन: जल तत्व प्रदान करूँगा लेकिन इसके लिए मूझे अपना शरीर गलाना पडेगा और शरीर गलने के बाद इस श्रृष्टि से मेरा नामो निशान मिट जायेगा।

तब भगवान शिव ने हर रूपी रूद्र को वरदान दिया और कहा:–
इस रूद्र रूपी शरीर के गलने के बाद तुम्हे नया शरीर और नया नाम प्राप्त होगा और मैं सम्पूर्ण रूप से तुम्हारे उस नये तन में निवास करूंगा जो श्रृष्टि के कल्याण हेतू होगा। हर नामक रूद्र ने अपने शरीर को गलाकर श्रृष्टि को जल तत्व प्रदान किया ।और उसी जल से एक महाबली वानर की उत्पत्ति हुई। जिसे हम हनुमान जी के नाम से जानते हैं।

यह घटना सतयुग के चौथे चरण में घटी। शिवजी ने हनुमान जी को राम नाम का रसायन प्रदान किया। हनुमान जी ने राम नाम का जप प्रारम्भ किया। त्रेतायुग में अन्जना और केशरी के यहाँ पुत्र रूप में अवतरित हुए।