गुरुनानक देव जयंती: गुरूजी के बचपन का किस्सा, जब कोई नहीं दे पाया उनके सवाल का जवाब

आज सिख सम्प्रदाय के साथ पूरे देश के लिए बहुत बड़ा दिन हैं क्योंकि अज गुरुनानक देव जी की 550वीं जयंती मनाई जा रही हैं। हर साल कार्तिक पूर्णिमा को प्रकाश पर्व के रूप में मनाया जाता हैं। गुरूजी के ज्ञान और चमत्कार के बारे में सभी जानते हैं कि किस तरह वे अपनी बातों से बड़ी सीख देते हैं। आज हम आपको उनके बचोपन का किस्सा बताने जा रहे हैं जब उन्हके सवाल का जवाब कोई भी नहीं दे पाया था। तो आइये जानते हैं इसके बारे में।

यह किस्‍सा भी नानक जी के बचपन से जुड़ा है। उनके पिता कल्याणराय ने उनका यज्ञोपवीत करवाने के लिए अपने इष्ट संबंधियों और परिचितों को निमंत्रित किया। बालक नानक को आसन पर बिठाकर जब पुरोहितों ने उन्हें कुछ मंत्र पढ़ने को कहा, तो उन्होंने उसका प्रयोजन पूछा। पुरोहित समझाते हुए बोले, ‘तुम्हारा यज्ञोपवीत संस्कार हो रहा है। धर्म की मर्यादा के अनुसार यह पवित्र सूत का डोरा प्रत्येक हिंदू को इस संस्कार में धारण कराया जाता है। धर्म के अनुसार यज्ञोपवीत संस्कार पूर्ण होने के बाद तुम्हारा दूसरा जन्म होगा। इसलिए तुम्हें भी इसी धर्म में दीक्षित कराया जा रहा है।’

तब नानक जी ने सवाल किया, ‘मगर यह तो सूत का है, क्या यह गंदा न होगा?’ इस पर पुरोहितों ने कहा कि यह तो साफ भी हो सकता है। फिर नानक जी ने पूछा- और टूट भी सकता है न? इस पर पुरोहित बोले- हां, पर नया भी तो धारण किया जा सकता है।

नानक जी ने फिर कुछ सोचकर कहा, ‘अच्छा, मृत्यु के बाद यह भी तो शरीर के साथ जलता होगा? यदि इसे धारण करने से भी मन, आत्मा, शरीर और स्वयं यज्ञोपवीत में पवित्रता नहीं रहती, तो इसे धारण करने से क्या लाभ?’ पुरोहित और अन्य लोग इस तर्क का उत्तर न दे पाए। तब बालक नानक बोले, ‘यदि यज्ञोपवीत ही पहनाना है तो ऐसा पहनाओ कि जो न टूटे, न गंदा हो और न बदला जा सके। जो ईश्वरीय हो, जिसमें दया का कपास हो, संतोष का सूत हो। ऐसा यज्ञोपवीत ही सच्चा यज्ञोपवीत है। पुरोहित जी! क्या आपके पास ऐसा यज्ञोपवीत है?’ सब अवाक्‌ रह गए, क्‍योंकि किसी के पास इसका कोई उत्तर नहीं था।