हिन्दी पंचाग के अनुसार कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि को छठी मइया की पूजा की जाती हैं लेकिन इस पर्व की शुरुआत पहले ही हो जाती हैं। चार दिन चलने वाले इस पर्व का आज पहला दिन हैं जिसे नहाय-खाय के नाम से जाना जाता हैं। इसके अगले दिन खरना होता है, तीसरे दिन छठ पर्व का प्रसाद तैयार किया जाता है और स्नान कर डूबते सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है। छठ पर्व के चौथे और आखिरी दिन उगले सूर्य की आराधना की जाती है। आज इस कड़ी में हम आपको छठी मइया का पौराणिक और पूजा के दौरान अर्घ्य देने का वैज्ञानिक महत्व बताने जा रहे हैं। कौन हैं छठी मइया?
कार्तिक मास की षष्ठी को छठ मनाई जाती है। छठे दिन पूजी जाने वाली षष्ठी मइया को बिहार में आसान भाषा में छठी मइया कहकर पुकारते हैं। मान्यता है कि छठ पूजा के दौरान पूजी जाने वाली यह माता सूर्य भगवान की बहन हैं। इसीलिए लोग सूर्य को अर्घ्य देकर छठ मैया को प्रसन्न करते हैं। वहीं, पुराणों में मां दुर्गा के छठे रूप कात्यायनी देवी को भी छठ माता का ही रूप माना जाता है। छठ मइया को संतान देने वाली माता के नाम से भी जाना जाता है। मान्यता है कि जिन छठ पर्व संतान के लिए मनाया जाता है। खासकर वो जोड़े जिन्हें संतान का प्राप्ति नही हुई। वो छठ का व्रत रखते हैं, बाकि सभी अपने बच्चों की सुख-शांति के लिए छठ मनाते हैं।छठ पूजा में अर्घ्य देने का वैज्ञानिक महत्व
यह बात सभी को मालूम है कि सूरज की किरणों से शरीर को विटामिन डी मिलती है और उगते सूर्य की किरणों के फायदेमंद और कुछ भी नहीं। इसीलिए सदियों से सूर्य नमस्कार को बहुत लाभकारी बताया गया। वहीं, प्रिज्म के सिद्धांत के मुताबिक सुबह की सूरत की रोशनी से मिलने वाले विटामिन डी से शरीर की प्रतिरोधक क्षमता बेहतर होती है और स्किन से जुड़ी सभी परेशानियां खत्म हो जाती हैं।