Janmashtami 2019: श्रीमदभगवतगीता बताती है जीवन का सत्य, जानें अंतिम छ: अध्यायों का सारांश

आज भाद्रपद कृष्ण अष्टमी हैं जिसे कृष्ण जन्माष्टमी के पावन पर्व के रूप में मनाया जाता हैं। आज देश के मंदिरों में बालगोपाल को सजाया जाता हैं और उनकी पूजा की जाती हैं। इस पावन पर्व के मौके पर हम आपके लिए कृष्ण के द्वारा अर्जुन को दिए गए उपदेशों अर्थात श्रीमदभगवतगीता के ज्ञान से जुड़ी जानकारी देने जा रहे है जो जीवन के सत्य को बताती हैं। तो आइये इस कड़ी में जानते हैं श्रीमदभगवतगीता के अंतिम छ: अध्यायों के सारांश के बारे में।

तेहरवां अध्याय
तेरहवें अध्याय में एक सीधा विषय क्षेत्र और क्षेत्रज्ञ का विचार है। यह शरीर क्षेत्र है, उसका जाननेवाला जीवात्मा क्षेत्रज्ञ है।

चौदहवां अध्याय
इस अध्याय का नाम गुणत्रय विभाग योग है। यह विषय समस्त वैदिक, दार्शनिक और पौराणिक तत्वचिंतन का निचोड़ है। सत्व, रज, तम नामक तीन गुण हैं। अकेला सत्व शांत रहता है और अकेला तम भी निश्चेष्ट रहता है, किंतु दोनों के बीच में रजोगुण उन्हें सक्रिय करता है।

पंद्रहवां अध्याय
पंद्रहवें अध्याय का नाम पुरुषोत्तमयोग है। इसमें विश्व का अश्वत्थ के रूप में वर्णन किया गया है। नर या पुरुष तीन हैं, क्षर, अक्षर और अव्यय। इनमें पंचभूत क्षर है, प्राण अक्षर है और मनस्तत्व या चेतना की संज्ञा अव्यय है।

सोलहवां अध्याय
सोलहवें अध्याय में देवासुर संपत्ति का विभाग बताया गया है। आरंभ से ही ऋग्देव में सृष्टि की कल्पना दैवी और आसुरी शक्तियों के रूप में की गई है। एक अच्छा और दूसरा बुरा।

सत्रहवां अध्याय
ये अध्याय श्रद्धात्रय विभाग योग है। इसका संबंध सत, रज और तम, इन तीनों गुणों से है, अर्थात् जिसमें जिस गुण का प्रादुर्भाव होता है, उसकी श्रद्धा या जीवन की निष्ठा वैसी ही बन जाती है। यज्ञ, तप, दान, कर्म ये सब इसी से संचालित होते हैं।

अठारहवां अध्याय
अठारहवें अध्याय में मोक्षसंन्यास योग का जिक्र है। इसमें गीता के समस्त उपदेशों का सार एवं उपसंहार है। इसमें बताया गया है कि पृथ्वी के मानवों में और स्वर्ग के देवताओं में कोई भी ऐसा नहीं जो प्रकृति के चलाए हुए इन तीन गुणों से बचा हो। मनुष्य को क्या कार्य है, क्या अकार्य है, इसकी पहचान होनी चाहिए। धर्म और अधर्म को, बंध और मोक्ष को, वृत्ति और निवृत्ति को जो बुद्धि ठीक से पहचनाती है, वही सात्विक बुद्धि है।