गणपति जी का आगमन हो चुका हैं और इन दस दिनों के गणेशोत्सव में सभी भक्तगण गणपति जी का पूजन करते हैं। गणपति जी को रिद्धि-सिद्धि के साथ ही बुद्धि का देवता भी माना जाता हैं। इसी के साथ गणपति जी को अपने लम्बे उदार के कारण लंबोदर भी कहा जाता हैं। लेकिन क्या आप जानते हैं कि इसके पीछे भी एक पौराणिक कथा हैं जो आज हम आपको बताने जा रहे हैं। तो आइये जानते हैं गणपति जी क्यों कहलाए लंबोदर।
एक बार भगवान शंकर अपनी पत्नी पार्वती को जीवन और मृत्यु चक्र के बारे में बता रहे थे। भगवान नहीं चाहते थे उनकी और माता पार्वती के बीच की ये बातें कोई और सुने। इसके लिए उन्होंने कैलाश पर्वत पर एक गुप्त स्थान को चुना और यहां आकर वह अपनी अर्द्धांगिनी को जीवन और मृत्यु से जुड़ी कहानियां सुनाने लगे। इसके लिए उन्होंने गणेशजी को एक द्वारपाल के रूप में तैनात कर दिया कि कोई उनकी बातें सुनने के लिए अंदर गुफा में न आने पाए। पिता की आज्ञा मानकर भगवान गणेश एकदम तत्परता के साथ द्वारपाल के रूप में वहां पर तैनात हो गए।
कुछ देर बाद वहां इंद्रदेव अन्य देवताओं की टोली के साथ वहां पहुंच गए और भगवान शंकर से भेंट करने के लिए बोलने लगे। किंतु पिता की आज्ञा के अनुसार, गणेशजी इंद्र और बाकी देवताओं को वहां जाने से रोकने लगे। गणेशजी के व्यवहार को देखकर इंद्र देवता को क्रोध आ गया और देखते ही देखते इंद्र देव और गणेशजी के बीच युद्ध छिड़ गया।
अब युद्ध में गणेशजी ने इंद्र देवता को तो पराजित कर दिया। लेकिन युद्ध करते-करते वह थक और उन्हें भूख लग गई। तब उन्होंने ढेर सारे फल खाए और खूब सारा गंगाजल पिया। भूख-प्यास अधिक लगने के कारण वह खाते गए खाते और पानी पीते गए और देखते ही देखते उनका उदर बड़ा होता चला गया। तब उनके पिता शंकरजी की दृष्टि उन पर पड़ी तो उनके लंबे उदर को देखकर वह उन्हें लंबोदर पुकारने लगे। जब से भगवान गणेशजी के कई नामों में एक लंबोदर भी जुड़ गया और गजानन लंबोदर कहलाने लगे।