गणेश चतुर्थी Ganesh Chaturthi 2018 का आगमन अपने साथ खुशियों की बहार लेकर आता हैं। चारों और "गणपति बप्पा मौरेया" के जयकारे गूंजते हुए दिखाई देते हैं। और आखिर हो भी क्यों नहीं बप्पा के चमत्कारों की गाथा है ही इतनी प्रबल। आप सभी यह तो जानते ही हैं कि श्रीगणेश पराक्रमी हैं, लेकिन क्या आप जानते हैं कि बाल गणेश बहुत नटखट स्वभाव के थे। जी हाँ, कान्हा की तरह ही बाल गणेश भी नटखट थे। आज हम आपको बाल गणेश का ही एक किस्सा बताने जा रहे हैं, जी उनके नटखटपन को उजागर करता हैं। तो आइये जानते हैं इस किस्से के बारे में।
एक बार बाल गणेश अपने मित्र मुनि पुत्रों के साथ खेल रहे थे। खेलते-खेलते उन्हें भूख लगने लगी। पास ही गौतम ऋषि का आश्रम था। ऋषि गौतम ध्यान में थे और उनकी पत्नी अहिल्या रसोई में भोजन बना रही थीं। गणेश आश्रम में गए और अहिल्या का ध्यान बंटते ही रसोई से सारा भोजन चुराकर ले गए और अपने मित्रों के साथ खाने लगे। तब अहिल्या ने गौतम ऋषि का ध्यान भंग किया और बताया कि रसोई से भोजन गायब हो गया है।
ऋषि गौतम ने जंगल में जाकर देखा तो गणेश अपने मित्रों के साथ भोजन कर रहे थे। गौतम उन्हें पकड़कर माता पार्वती के पास ले गए। माता पार्वती ने चोरी की बात सुनी तो गणेश को एक कुटिया में ले जाकर बांध दिया। उन्हें बांधकर पार्वती कुटिया से बाहर आईं तो उन्हें आभास होने लगा जैसे गणेश उनकी गोद में हैं, लेकिन जब देखा तो गणेश कुटिया में बंधे दिखे। माता काम में लग गईं, उन्हें थोड़ी देर बाद फिर आभास होने लगा जैसे गणेश शिवगणों के साथ खेल रहे हैं।
उन्होंने कुटिया में जाकर देखा तो गणेश वहीं बंधे दिखे। अब माता को हर जगह गणेश दिखने लगे। कभी खेलते हुए, कभी भोजन करते हुए और कभी रोते हुए। माता ने परेशान होकर फिर कुटिया में देखा तो गणेश आम बच्चों की तरह रो रहे थे। वे रस्सी से छुटने का प्रयास कर रहे थे। माता को उन पर अधिक स्नेह आया और दयावश उन्हें मुक्त कर दिया।