सीता नवमी : माता सीता के जीवन से जुड़ी ये बातें देती है जीने की सीख, अपनाए और रहे खुश

13 मई को वैशाख मास के शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि है। इस दिन माता सीता प्रकट हुई थीं। इसे जानकी जयंती भी कहते हैं। राजा जनक भूमि पर हल चला रहे थे, तब उन्हें धरती से एक कन्या प्राप्ति हुई। हल की नोंक को सीत कहते हैं, इसलिए कन्या का नाम सीता रखा गया था। सीता नवमी के दिन राम-जानकी की विधि-विधान से पूजा करने का चलन है। इससे घर पर आने वाले संकट दूर हो जाते है। सीता नवमी के पर्व पर आज हम आपको माता सीता से जुड़ी कुछ खास बातें बताने जा रहे है जिनकों अगर हम अपने जीवन में उतार ले तो कई परेशानियों से बच सकते है।

माता-पिता को सम्मान देना

सीता अपने माता-पिता को पूरा सम्मान देती थीं, उनकी सभी आज्ञाओं का पालन करती थीं। माता-पिता की तरह ही वे सास ससुर का भी सम्मान करती थीं। वनवास के समय जब माता-पिता उनसे मिलने आए तब, उन्होंने वहां पहले से आई हुईं सासों से आज्ञा ली, उसके बाद अपने परिजनों से मिलने गईं।

पति की सेवा और प्रेम

विवाह के बाद सीता स्वयं श्रीराम की देखभाल करती थीं, जबकि महल में असंख्य सेवक थे। जब राम को पिता के ने वनवास जाने की आज्ञा दी, तो वह भी राम के साथ वन जाने को तैयार हो गईं।

सभी की बातें ध्यान से सुनना


सीता पतिव्रता धर्म की साक्षात उदाहरण थीं, लेकिन जब माता अनसूयाजी ने उनको पतिव्रत धर्म का उपदेश दिया, तब उन्होंने बिना किसी अभिमान के सारी बातें सुनी। सीता ने माता अनसूया से ये नहीं कहा कि मुझे सब मालूम है। इस चरित्र से यह शिक्षा मिलती है कि वृद्ध लोगों की शिक्षा पर ध्यान देना चाहिए।

निडर रहना

रावण ने सीता का हरण किया और माता को अशोक वाटिका में रखा, लेकिन सीता ने रावण के किसी भी प्रलोभन को स्वीकार नहीं किया और वे किसी तरह उससे नहीं डरीं। रावण से सभी देवता डरते थे, लेकिन सीता निडर होकर उसके सामने ही तिरस्कार करती थीं।

हमेशा सावधान रहना

अशोक वाटिका में हनुमानजी ने सीताजी को श्रीराम नाम अंकित मुद्रिका दी और रामकथा भी सुनाई, लेकिन सीता ने आसानी से उनकी बातों का विश्वास नहीं किया। जब उन्हें ये विश्वास हो गया कि हनुमान मन, क्रम, वचन से राम का दूत है, उसके बाद ही वार्तालाप किया।

बचपन में खेलते समय माता सीता ने शिवजी का धनुष उठा लिया

बचपन में खेलते समय माता सीता ने शिवजी का धनुष उठा लिया था। राजा जनक ने उस समय पहली बार समझा कि ये सामान्य बालिका नहीं है, क्योंकि शिव धनुष को रावण, बाणासुर आदि कई वीर हिला तक भी नही सके थे। इसलिए जानकीजी का विवाह उस धनुष को तोड़ने वाले वीर व्यक्ति के साथ करने का निश्चय किया था। स्वयंवर में ये धनुष श्रीराम ने उठाया और तोड़ दिया था, इसके बाद सीता-राम का विवाह हो गया।