इन चारों को दिया था सीता माता ने श्राप, जो आज भी भुगत रहे हैं

आपने रामायण धारावाहिक तो देखा ही होगा और अगर नहीं देखा है तो जरूर देखिएगा यह हमें हमारे आध्यात्म से जोड़ता हैं। आपने इस धारावाहिक में देखा होगा कि ऋषि-मुनि जब किसी से नाराज हो जाते थे तो उन्हें श्राप दे देते थे। उस श्राप का बोझ उस व्यक्ति को भुगतना पड़ता था। ऐसे ही एक श्राप के बारे में आज हम आपको बताने जा रहे हैं जिसे त्रेतायुग में माता सीता ने दिया था और जिसे दिया था वे आज भी उस श्राप को भुगत रहे हैं। तो आइये जानते हैं उस श्राप के बारे में कि सीता माता ने किसे और क्यों श्राप दिया।

यह कहानी शुरू होती है राजा दसरथ की मृत्यु के बाद पिण्डदान से, भगवान राम अपने भ्राता लक्ष्मण के साथ पिंडदान की सामग्री लेने गए थे और पिंडदान का समय निकलता जा रहा था। तब माता सीता ने समय के महत्व को समझते हुए, अपने ससुर राजा दशरथ का पिंडदान उसी समय पर राम-लक्ष्मण की उपस्थिति के बिना किया। माता सीता ने अपने ससुर का पिंडदान पुरी विधि विधान के साथ किया था।

जब भगवान राम लौट कर आये और पिंड दान के विषय में पूछा तब माता सीता ने राजा दशरथ का पिंडदान समय पर करने की बात कही और वहां पिंडदान के समय उपस्थित साक्षी पंडित, गाय, कौवा, और फल्गु नदी को पूछने के लिए कहा। भगवान राम ने जब इन चारो से पिंडदान किये जाने की बात सच है या नहीं यह पूछा, तब चारो ने झूठ बोल दिया कि माता सीता ने कोई पिंडदान नहीं किया। ये सुनकर माता सीता ने इन चारो को झूठ बोलने की सजा देते हुए, आजीवन श्रापित कर दिया।

पंडित को श्राप दिया कि सारे पंडित समाज को श्राप मिला कि पंडित को कितना भी मिलेगा उसकी दरिद्रता हमेशा बनी रहेगी। फाल्गु नदी के लिए श्राप था – कितना भी पानी गिरे लेकिन नदी ऊपर से सुखी ही रहोगी नदी के ऊपर कभी पानी का बहाव नहीं होगा। कौवे को कहा – अकेले खाने से कभी पेट नहीं भरेगा और आकस्मिक मौत मरेगा। गाय को ये कहकर श्रापित किया – हर घर में पूजा होने के बाद भी तुमको लोगो का जूठन खाना पीना पड़ेगा।

सीता माता द्वारा दिए गए इन श्रापों का प्रभाव आज भी इन चारो में देखा जा सकता है। आज भी ब्रम्हाण को कितना भी दान मिले लेकिन उसके मन में दरिद्रता बनी रहती है, गाय पूजनीय होकर भी हर घर का जूठा खाना खाती है, फाल्गु नदी हमेशा सुखी हुई रहती है, और कौआ अपना पेट भरने के लिए झुण्ड में खाना खाता है और उसकी आकस्मिक मौत ही होती है।