कृष्ण जन्मोत्सव का दिन जन्माष्टमी आ चूका हैं। सभी भक्तगण इस दिन भगवान कृष्ण की भक्ति में लीन होते हैं और उनकी पूजा अर्चना करते हैं। श्रीकृष्ण का वह मनोहर रूप सभी भक्तों के मन में बस जाता हैं। उनके रूप को और सुन्दर बनाता है उनके मुकुट पर सजा मोरपंख, जो सादगी को दर्शाता हैं। लेकिन क्या आप जानते हैं कि इस मोरपंख के और भी कई महत्व होते हैं। आज हम इस जन्माष्टमी के इस पावन पर्व पर आपको श्रीकृष्ण के धारण किए हुए मोरपंख का महत्व बताने जा रहे हैं। तो आइये जानते हैं इस मोरपंख का महत्व।
* मोर की पवित्रता से प्रभावित प्रभु
सारे संसार में मोर ही एकमात्र ऐसा प्राणी है जो अपने सम्पूर्ण जीवन में ब्रह्मचर्य व्रत का पालन करता है। मोरनी का गर्भधारण भी मोर के आंसुओं को पीकर होता है। अतः इतने पवित्र पक्षी के पंख को स्वयं भगवान श्री कृष्ण अपने मष्तक पर धारण करते हैं। * राधारानी के प्रेम की धरोहर
माना जाता है कि राधाजी के महल में बहुत से मोर हुआ करते थे। कृष्ण की बांसुरी पर जब राधाजी नृत्य करती थीं तो मोर भी कृष्णभक्ति में उनके साथ झूमने लगते थे। ऐसे ही मोर का एक बार पंख नृत्य के वक्त जमीन पर गिर गिया। जब भगवान कृष्ण ने इसे राधाजी के प्रेम के प्रतीक के रूप में अपने मुकुट में धारण कर लिया।
* प्रभु को प्रिय थे मित्र और शत्रु दोनों ही
कहते हैं कि भगवान कृष्ण मित्र और शत्रु दोनों के लिए मन में समान भाव रखते थे। श्री कृष्ण के भाई थे बलराम जो शेषनाग के अवतार माने जाते हैं। नाग और मोर में बहुत भयंकर शत्रुता होती है। अतः श्री कृष्ण मोर का पंख अपने मुकुट में लगाकर यह संदेश देते हैं कि वे सभी के प्रति समान भावना रखते हैं। * सुख और दुख का प्रतीक
मोरपंख में सभी रंग पाए जाते हैं। इसी प्रकार हमारा जीवन भी सभी प्रकार के रंगों से भरा है। कभी सुख तो कभी दुख, कभी धूप तो कभी छांव। मनुष्य को जीवन के सभी रंगों को प्रेम से अपनाना चाहिए।