क्या आप जानतें है भगवान श्रीराम ने अपने भाइयों के साथ भी उड़ाई थी पतंग

मकर संक्राति वर्ष का पहला सबसे बड़ा त्यौहार होता है और इसे आने में मात्र अब कुछ ही दिन बचे हैं। इस दिन दान पुण्य करते हैं और देश के कुछ हिस्सों में तो इस दिन पतंग भी उड़ाने की भी परंपरा है । वैसे तो आपने सुना होगा कि पतंगबाजी का जन्म चीन में हुआ है लेकिन क्या आप जानते हैं कि इस परंपरा की शुरुआत खुद भगवान राम ने की थी। प्रसिद्ध धार्मिक ग्रंथ 'रामचरित मानस' के आधार पर श्रीराम ने अपने भाइयों के साथ पतंग उड़ाई थी। इस संदर्भ में 'बालकांड' में उल्लेख मिलता है -

'राम इक दिन चंग उड़ाई।
इन्द्रलोक में पहुंची जाई।।'

बड़ा ही रोचक प्रसंग है। पंपापुर से हनुमानजी को बुलवाया गया था, तब हनुमानजी बालरूप में थे। जब वे आए, तब 'मकर संक्रांति' का पर्व था। श्रीराम भाइयों और मित्र मंडली के साथ पतंग उड़ाने लगे। कहा गया है कि वह पतंग उड़ते हुए देवलोक तक जा पहुंची। उस पतंग को देखकर इन्द्र के पुत्र जयंत की पत्नी बहुत आकर्षित हो गईं। वह उस पतंग और पतंग उड़ाने वाले के प्रति सोचने लगी-

'जासु चंग अस सुन्दरताई।
सो पुरुष जग में अधिकाई।।'

इस भाव के मन में आते ही उसने पतंग को हस्तगत कर लिया और सोचने लगी कि पतंग उड़ाने वाला अपनी पतंग लेने के लिए अवश्य आएगा। वह प्रतीक्षा करने लगी। उधर पतंग पकड़ लिए जाने के कारण पतंग दिखाई नहीं दी, तब बालक श्रीराम ने बाल हनुमान को उसका पता लगाने के लिए रवाना किया।

पवनपुत्र हनुमानजी आकाश में उड़ते हुए इन्द्रलोक पहुंच गए। वहां जाकर उन्होंने देखा कि एक स्त्री उस पतंग को अपने हाथ में पकड़े हुए है। उन्होंने उस पतंग की उससे मांग की।

उस स्त्री ने पूछा- 'यह पतंग किसकी है?'

तब हनुमानजी ने रामचन्द्रजी का नाम बताया। इस पर उसने उनके दर्शन करने की अभिलाषा प्रकट की। हनुमानजी यह सुनकर लौट आए और सारा वृत्तांत श्रीराम को कह सुनाया।

श्रीराम ने यह सुनकर हनुमान को वापस भेजा कि वे उन्हें वनवास के दौरान चित्रकूट में अवश्य ही दर्शन देंगे। हनुमान ने यह उत्तर जयंत की पत्नी को कह सुनाया, जिसे सुनकर जयंत की पत्नी ने पतंग छोड़ दी।

'तिन तब सुनत तुरंत ही, दीन्ही छोड़ पतंग।
खेंच लइ प्रभु बेग ही, खेलत बालक संग।


इस अद्भुत प्रसंग के आधार पर मकर संक्रांति और पतंग की प्राचीनता का पता चलता है।