श्राद्ध में ब्राहमणों को भी करवाया जाता हैं भोज, इन आवश्यक निर्देशों का करें पालन

श्राद्ध पक्ष जारी है जो कि 17 सितंबर तक किया जाना हैं। इन दिनों में सभी अपने पूर्वजों की तृप्ति के लिए उन्हें भोग लगाते है। लेकिन क्या आप जानते हैं कि पूर्वज भोग के अलावा ब्राहमण मुख से भी सूक्ष्म रूप से भोजन ग्रहण करते हैं। इसलिए ही श्राद्ध के दिनों में ब्राह्मणों को भोजन कराया जाता हैं। ब्राह्मण भोज के दौरान कई नियमों की पालना की जाती हैं ताकि उचित फल प्राप्त हो सकें और पूर्वजों का आशीष मिल सकें। देखा जाता हैं कि केवल ब्राह्मण-भोजन करवा कर श्राद्ध की पूर्णता समझ ली जाती है। लेकिन इसके अलावा भी आपको कई चीजों का ध्यान देने की जरूरत होती है। तो आइये जानते हैं इसके बारे में।

श्राद्ध-भोज में ब्राह्मण

श्राद्ध-भोज कराने के लिए शास्त्र में योग्य ब्राह्मण के निमंत्रण का निर्देश है- जो सदाचारी हो, संध्या वंदन, गायत्री व अग्निहोत्र करता हो, सत्यवादी हो, धर्मग्रंथों व शास्त्रों का ज्ञाता हो, जप-अनुष्ठान करने वाले श्रोत्रिय ब्राह्मण को ही यथासंभव श्राद्धभोज के निमंत्रण में वरीयता देनी चाहिए, इनके अभाव में किसी अन्य ब्राह्मण को आमंत्रित करना चाहिए किंतु विद्या से हीन, नास्तिक, धर्म में आस्था ना रखने वाला, व्यापार करने वाला, गुरु की निंदा करने वाला, जुआ खेलने वाला, मदिरापान करने वाला, व्यसनी व अधम ब्राह्मणों का सर्वथा त्याग करना चाहिए।

श्राद्धभोज में आसन

श्राद्धभोज में ऊनी, काष्ठ, कंबल, कुश व रेशम के आसन श्रेष्ठ माने गए हैं। यथासंभव श्राद्ध में ब्राह्मण भोज कराते समय इन्हीं आसनों का प्रयोग करना चाहिए।

श्राद्धभोज में पाद प्रक्षालन

शास्त्रानुसार श्राद्धभोज कराने से पूर्व ब्राह्मणों के पाद-प्रक्षालन (पैर धुलाना) अनिवार्यरूपेण करना चाहिए। ब्राह्मणों के पैर धुलाते समय यह ध्यान रखें कि वे किसी ना किसी आसन पर विराजमान हों, खड़े-खड़े पैर धुलाने से पितर रुष्ट हो जाते हैं।

श्राद्धभोज में मौन की अनिवार्यता

श्राद्धभोज में भोजन करते समय ब्राह्मण को मौन रहना अनिवार्य है, बहुत आवश्यक होने पर मांगने या इनकार का संकेत हाथ के इशारे से करना चाहिए। भोजन करते समय भोजन की प्रशंसा या भोजन में कुछ कमी की चर्चा नहीं करनी चाहिए। श्राद्धभोज कराने वालों को भी भोजन के संबंध में ब्राह्मणों से कुछ नहीं पूछना चाहिए।

श्राद्धभोज में पात्र की श्रेष्ठता

श्राद्धभोज में भोजन परोसने हेतु स्वर्ण, रजत, कांस्य अथवा तांबे के पात्र क्रमश: श्रेष्ठ माने गए हैं। मिट्टी व लोहे के पात्र का सर्वथा निषेध है। इनके अभाव में पलाश की पत्तल का प्रयोग करना चाहिए। केले के पत्ते अथवा वर्तमान में प्रचलित कागज, प्लास्टिक व अन्य पदार्थ की बनी पत्तल पर श्राद्ध भोजन कदापि नहीं परोसना चाहिए।

श्राद्धभोज में रसोई

श्राद्धभोज में भोजन पकाते समय विशेष शुचिता का ध्यान रखना चाहिए। श्राद्ध भोजन पकाते समय रसोईघर में किसी अपवित्र वस्तु या व्यक्ति का प्रवेश नहीं होना चाहिए। श्राद्धभोज की रसोई पकाते समय यदि उसमें कोई कीड़ा, मक्खी-मच्छर, बाल इत्यादि गिर जाए तो उसे पुन: प्रयोग नहीं करना चाहिए। श्राद्धभोज में प्याज, लहसुन, बैंगन, अरहर, शलजम, हींग, काला नमक, चना, अलसी, महुआ, गोल लौकी, गाजर का प्रयोग नहीं करना चाहिए।

भोजन के उपरांत दक्षिणा

शास्त्रानुसार कभी भी ब्राह्मण भोजन के उपरांत यदि ब्राह्मण को यथोचित दक्षिणा दिए बिना खाली हाथ विदा किया जाए तो ब्राह्मण-भोजन निष्फल हो जाता है। अत: केवल श्राद्धकर्म में ही नहीं अपितु सदैव ब्राह्मण-भोजन करवाने के उपरांत ब्राह्मण को यथासामर्थ्य दक्षिणा, श्रीफल व वस्त्र आदि देकर उनके चरणस्पर्श करने के पश्चात् ही उन्हें विदा करना चाहिए।

ब्राह्मण-भोजन के अभाव में आमान्न दान

यदि श्राद्ध में उपर्युक्त शास्त्रोक्त नियमानुसार ब्राह्मण-भोजन कराना संभव नहीं हो तो उसके स्थान पर ब्राह्मण को आमान्न दान (बिना पका हुआ अन्न व सामग्री); जिसे लोकभाषा में 'सीदा' कहा जाता है, देकर भी श्राद्धकर्म किया जा सकता है।