शरद पूर्णिमा व्रत संतान सुख देने वाला, जानें इसकी कथा के बारे में

आश्विन मास की पूर्णिमा का दिन शरद पूर्णिमा के रूप में मनाया जाता हैं। हिन्दू धर्म ग्रंथों में पूर्णिमा का महत्व बताया गया हैं, लेकिन शरद पूर्णिमा को इनमें सबसे ऊपर माना जाता हैं। माना जाता है कि पूरे साल में केवल इसी दिन चन्द्रमा अपनी सोलह कलाओं के साथ उपस्थित होता हैं। शरद पूर्णिमा को कोजागरी पूर्णिमा और रास पूर्णिमा के नाम से भी जाना जाता हैं। इस दिन व्रत का भी बड़ा महत्व माना जाता हैं जिसे कौमुदी व्रत भी बोलते हैं। इसके महत्व को देखते हुए आज हम आपको इसकी कथा के बारे में बताने जा रहे हैं। तो आइये जानते है इसके बारे में।

एक साहूकार की दो पुत्रियां थीं। वे दोनों पूर्णमासी का व्रत करती थीं। बड़ी बहन तो पूरा व्रत करती थी पर छोटी बहन अधूरा। छोटी बहन के जो भी संतान होती, वह जन्म लेते ही मर जाती। परन्तु बड़ी बहन की सारी संतानें जीवित रहतीं। एक दिन छोटी बहन ने बड़े-बड़े पण्डितों को बुलाकर अपना दुख बताया तथा उनसे कारण पूछा। पण्डितों ने बताया-‘तुम पूर्णिमा का अधूरा व्रत करती हो, इसीलिए तुम्हारी संतानों की अकाल मृत्यु हो जाती है। पूर्णिमा का विधिपूर्वक पूर्ण व्रत करने से तुम्हारी संतानें जीवित रहेंगी।’ तब उसने पण्डितों की आज्ञा मानकर विधि-विधान से पूर्णमासी का व्रत किया।

कुछ समय बाद उसके लड़का हुआ, लेकिन वह भी शीघ्र ही मर गया। तब उसने लड़के को पीढ़े पर लेटाकर उसके ऊपर कपड़ा ढक दिया। फिर उसने अपनी बड़ी बहन को बुलाया और उसे वही पीढ़ा बैठने को दे दिया। जब बड़ी बहन बैठने लगी तो उसके वस्त्र बच्चे से छूते ही लड़का जीवित होकर रोने लगा। तब क्रोधित होकर बड़ी बहन बोली-‘तू मुझ पर कलंक लगाना चाहती थी। यदि मैं बैठ जाती तो लड़का मर जाता।’ तब छोटी बहन बोली-‘ यह तो पहले से ही मरा हुआ था। तेरे भाग्य से जीवित हुआ है। हम दोनों बहनें पूर्णिमा का व्रत करती हैं तू पूरा करती है और मैं अधूरा, जिसके दोष से मेरी संतानें मर जाती हैं। लेकिन तेरे पुण्य से यह बालक जीवित हुआ है।’ इसके बाद उसने पूरे नगर में ढिंढोरा पिटवा दिया कि आज से सभी पूर्णिमा का पूरा व्रत करें, यह संतान सुख देने वाला है।