कहीं आप गलत तो नहीं करते भगवान की परिक्रमा, जानें इससे जुड़े नियम

हर व्यक्ति अपने अच्छे जीवन की कामना और शुभता के लिए भगवान से प्रार्थना करता है और मंदिर में जाकर नतमस्तक होता हैं। मंदिर में जाकर व्यक्ति भगवान की विधिवत पूजा करता हैं ताकि भगवान प्रसन्न हो और अंत में परिक्रमा लगाता हैं ताकि वहां फैली हुई दैवीय शक्तियों का उन पर सकारात्मक प्रभाव पड़ें। लेकिन क्या आप जानते हैं कि परिक्रमा से जुड़े कुछ नियम होते है जिनका पालन करने पर ही शुभ फल मिलते हैं अन्यथा यह विपरीत प्रभाव डालता हैं। इसलिए आज हम आपको परिक्रमा से जुड़े नियमों की जानकारी देने जा रहे हैं। तो आइये जानते है इन नियमों के बारे में...

किस ओर से करें परिक्रमा
याद रखें भगवान की प्रतिमा की जब भी परिक्रमा करें हमेशा दाहिने ओर करना चाहिए। ईश्वर की सारी शक्तियां और सकारात्मक ऊर्जा उत्तर से दक्षिण की ओर जाती हैं। जबकि यदि आपने बाएं ओर से परिक्रमा किया तो आपकी परिक्रमा का कोई लाभ आपको नहीं मिलेगा और इसके नकारात्मक प्रभाव मिलेंगे। दक्षिण की ओर जो परिक्रमा होती है उसे प्रदक्षिणा कहते हैं।

किस भगवान की कितनी बार करें परिक्रमा
हनुमानजी की तीन बार परिक्रमा करनी चाहिए जबकि सूर्य देव की सात, गणपति भगवान की चार बार करें। वहीं भगवान विष्णु और उनके सभी अवतारों की चार बार करें। जबकि मां दुर्गा की परिक्रमा एक बार ही करना चाहिए। इसके साथ ही शिव जी की आधी प्रदक्षिणा ही करें। इसके पीछे यह मान्यता है कि जलधारी को लांघना नहीं चाहिए। जलधारी तक पंहुचकर वापस लौट जाएं यदि जलधारी लांघ ली तो परिक्रमा पूरी मान ली जाएगी।

जब जगह न हो तो सामने ही गोल-गोल घूमें
वैसे तो मंदिर या प्रतिमा के गोल घूम कर परिक्रमा करनी चाहिए लेकिन कई मंदिर में या प्रतिमा के पीछे जगह नहीं होती है। ऐसे में आप प्रतिमा या मंदिर के सामने ही गोल-गोल घूम कर परिक्रमा कर लें।

परिक्रमा करते हुए इस मंत्र का करें जाप
यानि कानि च पापानि जन्मांतर कृतानि च।
तानि सवार्णि नश्यन्तु प्रदक्षिणे पदे-पदे।।