Bakrid 2018 : मीना में शैतान को पत्थर क्यों मारा जाता हैं, आइये जानें

हज यात्रा शुरू हो चुकी हैं और इसका समापन होता हैं ईदु-उल-जुहा के पर्व पर शैतान को पत्थर मारने की रस्म से। जी हाँ, जिस तरह बहरीन के पर्व पर बकरे की कुर्बानी एक प्रतीकात्मक रूप हैं। उसी तरह हज में शैतान को पत्थर मारने की रस्म भी प्रतीकात्मक हैं। मक्का के पास स्थित रमीजमारात में यह रस्म तीन दिन तक निभाई जाती है। किसी भी हज यात्री की यात्रा तभी पूरी मानी जाती है जब मीना में शैतान को पत्थर मारा जाता हैं। लेकिन क्या आप जानते हैं कि ऐसा क्यों किया जाता हैं। आइये हम बताए हैं आपको।

इस परंपरा के पीछे हजरात इब्राहिम और उनके बेटे इस्माइल की कहानी है। हजरत इब्राहिम से जब अल्लाह ने उनके बेटे की कुर्बानी मांगी तो उन्होंने अपने बेटे को कुर्बान करने के फैसला किया। लेकिन शैतान उन्हें खुदा की राह से भटकाना चाहता था और कह रहा था कि यह कैसा खुदा है जो तुमसे तुम्हारा बेटा मांग रहा है। ऐसे समय में हजरत इब्राहिम ने एक पत्थर उठाकर शैतान को मारकर भगा दिया।

जहां पर हजरत साहब ने शैतान को पत्थर मारा था वहां एक स्तंभ है जिसे शैतान मानकर आज भी उसी परंपरा को निभाने के लिए तीर्थयात्री पत्थर मारते हैं। बहुत से लोग यह मानते हैं कि पत्थर उस स्तंभ में लगे, तभी शैतान भागता है। जबकि कुरान और हदीस में बताया गया है कि पत्थर उठाकर फेंकने भर से शैतान भाग जाता है। सिद्दीकी कहते हैं असल में यह अपने अंदर बैठी बुराइयों को दूर करने की बात है।

लेकिन लोग इस बात को गहराई में उतारने की बजाय प्रतीक में ऐसे डूब चुके हैं कि इस प्रकार की घटनाएं सामने आ जाती है। इनका कहना है कि अगर लोग कुरान और हदीस को अच्छी तरह से समझकर हज यात्रा करें तो इस तरह की दुर्घटनाएं रुक सकती हैं और लोगों के जीवन में बड़ा बदलाव आ सकता है।