कजली तीज को सतुड़ी तीज के नाम से भी जाना जाता हैं। इस दिन का व्रत सुहागिनों के लिए बड़ा महत्व रखता हैं। इस दिन सुहागिन महिला अपने पति की दीर्घायु के लिए पूरे विधिविधान के साथ व्रत रखती हैं और पूजा करती हैं। इस डॉन तीज माता की पूजा की जाती हैं और उनसे आशीर्वाद माँगा जाता हैं। इसी के साथ इस दिन नीम के पेड़ की टहनी की भी पूजा की जाती हैं। क्या आप इसके पीछे का कारण जानते हैं। नहीं जानते, तो आइये आज हम बताते हैं आपको इसके पीछे की प्रचलित कथा के बारे में।
एक साहूकार था उसके सात बेटे थे। सतुड़ी तीज के दिन उसकी बड़ी बहु नीम के पेड़ की पूजा कर रही होती है तभी उसका पति मर जाता है। कुछ समय बाद उसके दुसरे बेटे की शादी होती है, उसकी बहु भी सतुड़ी तीज के नीम के पेड़ की पूजा कर रही होती है तभी उसका पति मर जाता है। इस तरह उस साहूकार के 6 बेटे मर जाते है।
फिर सातवें बेटे की शादी होती है और सतुड़ी तीज के दिन उसकी पत्नी अपनी सास से कहती है कि वह आज नीम के पेड़ की जगह उसकी टहनी तोड़ कर उसकी पूजा करेगी। तब वह पूजा कर ही रही होती है कि साहूकार के सभी 6 बेटे अचानक वापस आ जाते है लेकिन वे किसी को दिखते नहीं है। तब वह अपनी सभी जेठानियों को बुला कर कहती है कि नीम के पेड़ की पूजा करो और पिंडा को काटो। तब वे सब बोलती है कि वे पूजा कैसे कर सकती है जबकि उनके पति यहाँ नहीं है। तब छोटी बहुत बताती है कि उन सब के पति जिंदा है। तब वे प्रसन्न होती है और नीम की टहनी की पूजा अपने पति के साथ मिल कर करती है। इसके बाद से सब जगह बात फ़ैल गई की इस तीज पर नीम के पेड़ की नहीं बल्कि उसकी टहनी की पूजा करनी चाहिए।