Ramadan 2020 : रमजान में रखा जाता हैं आंख, ज़बान और कान का रोजा

इस्लाम धर्म का सबसे पाक महीना रमजान चांद दिखने पर 24 या 25 अप्रैल से शुरू होगा। यह महीना मुस्लिम सम्प्रदाय के लिए बहुत महत्व रखता हैं और इस पूरे महीने रोजे रखे जाते हैं एवं नमाज अदा की जाती हैं। नमाज के अलावा रमजान में रात के वक्त एक विशेष नमाज भी पढ़ी जाती है, जिसे तरावीह कहते हैं। मान्यताएं हैं कि इस महीने अल्लाह अपने बंदों को बेशुमार रहमतों से नवाजता है और दोजख (जहान्नम) के दरवाजे बंद कर के जन्नत (स्वर्ग) के दरवाजे खोल देता है।

मान्यता है कि इस महीने की गई इबादत का सवाब बाकी महीनों के मुकाबले 70 गुना मिलता है। रमजान में रोजा नमाज के साथ कुरान पढ़ने की भी काफी फजीलत है, क्योंकि रमजान के महीने में 21वें रोजे को ही पैगंबर हजरत मोहम्मद साहब पर ही अल्लाह ने ‘कुरान शरीफ' नाजिल किया था। यानी कुरान अस्तित्व में आया था। रमजान के महीने का चांद दिखने के बाद से ही तरावीह (एक तरह की नमाज) पढ़ने का सिलसिला शुरू हो जाता है। इसी रात सूरज निकलने से पहले सुबह के समय सहरी खाकर मुस्लिम समुदाय के लोग रमजान का पहला रोजा रखकर अपनी इबादतों का सिलसिला शुरू कर देते हैं। रमजान में नमाज और रोजा रखने के साथ तरावीह पढ़ने की भी काफी फजीलत बताई गई है।

सहरी और इफ्तार क्या है और रमजान में इसकी क्या फजीलत है?

रमजान के महीने में सहरी और इफ्तार करने की भी बेहद फजीलत है। सहरी सुबह सूरज निकलने से पहले खाए गए खाने को कहते हैं। सहरी खाकर ही रोजा रखा जाता है। कहा जाता है कि पैगंबर हजरत मोहम्मद साहब ने सहरी करने को सुन्नत बताया है। कहते हैं कि सहरी करने से बरकत होती है। इसलिए सहरी करने से सवाब मिलता है। शाम में सूरज ढलने पर जब रोजा खोलते हैं उसे इफ्तार कहते हैं। कहते हैं इफ्तार के समय रोजेदार दिल से जो दुआ मागंते हैं, अल्लाह उनकी तमाम जायज दुआएं कुुबूल करता है।

आंख, ज़बान और कान का रोजा

रोजे रखने का मतलब सिर्फ खाने और पीने की चीजों से दूरी बनाना नहीं होता है। बल्कि रोजा आंख, ज़बान और कान का भी होता है। यानी रोजा रखने के बाद रोजेदार ना गलत बात कर सकता है और ना झूठ बोल सकता है और ना ही किसी की बुराई कर सकता है। इसी तरह गलत चीजों को देखने और सुनने से भी रोजा टूट जाता है। इसलिए कहा जाता है कि रोजा रखने पर इंसान हर गलत काम और बुराइयों से पाक हो जाता है।