राम नाम की महिमा : राम नाम से पानी पर चलने लगा व्यक्ति

साल 2019 में सुप्रीम कोर्ट ने रामलला के पक्ष में फैसला सुनाया। इसके ठीक नौ महीने बाद अयोध्या में आज 5 अगस्त, 2020 को राम मंदिर के लिए भूमिपूजन होने जा रहा है। 5 शताब्दियों के बाद आज अयोध्या का वैभव लौटेगा। राम नाम की महिमा भक्तों के लिए बहुत महत्व रखती हैं और उनके मन में आत्मविश्वास पैदा करती हैं। आज इस कड़ी में हम आपको विभीषण से जुड़ी कथा के बारे में बताने जा रहे हैं जो राम नाम की महिमा को प्रदर्शित करती हैं और भक्तों की आस्था को प्रबल करती हैं।

समुद्रतट पर एक व्यक्ति चिंतातुर बैठा था, इतने में उधर से विभीषण निकले। उन्होंने उस चिंतातुर व्यक्ति से पूछाः क्यों भाई! तुम किस बात की चिंता में पड़े हो?

मुझे समुद्र के उस पार जाना हैं परंतु मेरें पास समुद्र पार करने का कोई साधन नहीं हैं। अब क्या करूँ मुझे इस बात की चिंता हैं। अरे भाई, इसमें इतने अधिक उदास क्यों होते हो?

ऐसा कहकर विभीषण ने एक पत्ते पर एक नाम लिखा तथा उसकी धोती के पल्लू से बाँधते हुए कहाः इसमें मेनें तारक मंत्र बाँधा हैं। तू इश्वर पर श्रद्धा रखकर तनिक भी घबराये बिना पानी पर चलते आना। अवश्य पार लग जायेगा।

विभीषण के वचनों पर विश्वास रखकर वह व्यक्ति समुद्र की ओर आगे बढ़ने लगा। वहं व्यक्ति सागर के सीने पर नाचता-नाचता पानी पर चलने लगा। वह व्यक्ति जब समुद्र के बीच में आया तब उसके मन में संदेह हुआ कि विभीषण ने ऐसा कौन सा तारक मंत्र लिखकर मेरे पल्लू से बाँधा हैं कि मैं समुद्र पर सरलता से चल सकता हूँ। इस मुझे जरा देखना चाहिए।

उस व्यक्ति ने अपने पल्लू में बँधा हुआ पत्ता खोला और पढ़ा तो उस पर दो अक्षर में केवल राम नाम लिखा हुआ था। राम नाम पढ़ते ही उसकी श्रद्धा तुरंत ही अश्रद्धा में बदल गयीः अरे! यह कोई तारक मंत्र हैं! यह तो सबसे सीधा सादा राम नाम हैं ! मन में इस प्रकार की अश्रद्धा उपजते ही वह व्यक्ति डूब कर मरगया।

इसलिए विद्वानो ने कहां हैं श्रद्धा और विश्वास के मार्ग में संदेह नहीं करना चाहिए क्योकि अविश्वास एवं अश्रद्धा ऐसी विकट परिस्थितियाँ निर्मित हो जाती हैं कि मंत्र जप से काफी ऊँचाई तक पहुँचा हुआ साधक भी विवेक के अभाव में संदेहरूपी षड्यंत्र का शिकार होकर अपना अति सरलता से पतन कर बैठता हैं। इस लिये साधारण मनुष्य को तो संदेह की आँच ही गिराने के लिए पर्याप्त हैं। हजारों-लाखों-करोडों मंत्रो की साधना जन्मों-जन्म की साधना अपने सदगुरु पर संदेह करने मात्र से नष्ट हो जाती है।