रक्षाबंधन का त्योंहार अपनेआप में एक विशेष महत्व रखता हैं। इस त्योंहार को सावन मास की पूर्णिमा को मनाया जाता हैं। इस बार रक्षा बंधन का त्योंहार 26 अगस्त को मनाया जा रहा हैं। शास्त्रों के अनुसार इस त्योंहार का पौराणिक रूप से भी बड़ा महत्व होता है। यह त्योंहार सिर्फ भाई-बहन के पवित्र रिश्ते की गहराई ही नहीं बल्कि सम्पूर्ण समाज की एकता को भी दर्शाता हैं। हम सभी यह त्योंहार मनाते हैं लेकिन क्या आप इस त्योंहार के पीछे का धर्मिक महत्व जानते हैं। आइये आज हम बताते हैं आपको रक्षाबंधन का धर्मिक महत्व।
रक्षाबंधन के त्यौहार की उत्पत्ति धार्मिक कारणों से मानी जाती है जिसका उल्लेख पौराणिक ग्रंथों और कथाओं में मिलता है। इस कारण पौराणिक काल से इस त्यौहार को मनाने की यह परंपरा निरंतरता में चलती आ रही है। चूंकि देवराज इंद्र ने रक्षासूत्र के दम पर ही असुरों को पराजित किया, चूंकि रक्षासूत्र के कारण ही माता लक्ष्मी ने भगवान विष्णु को राजा बलि के बंधन से मुक्त करवाया, महाभारत काल की भी कुछ कहानियों का उल्लेख रक्षाबंधन पर किया जाता है अत: इसका त्यौहार को हिंदू धर्म की दृष्टि से बहुत महत्वपूर्ण माना जाता है।
श्रावण पूर्णिमा यानि रक्षाबंधन के दिन ही प्राचीन समय में ऋषि-मुनि अपने शिष्यों का उपाकर्म कराकर उन्हें विद्या-अध्ययन कराना प्रारंभ करते थे। उपाकर्म के दौरान पंचगव्य का पान करवाया जाता है तथा हवन किया जाता है। उपाकर्म संस्कार के बाद जब जातक घर लौटते हैं तो बहनें उनका स्वागत करती हैं और उनके दांएं हाथ पर राखी बांधती हैं। इसलिये भी इसका धार्मिक महत्व माना जाता है।
इसके अलावा इस दिन सूर्य देव को जल चढाकर सूर्य की स्तुति एवं अरुंधती सहित सप्त ऋषियों की पूजा भी की जाती है इसमें दही-सत्तू की आहुतियां दी जाती हैं। इस पूरी क्रिया को उत्सर्ज कहा जाता है।