लगातार 4 दिन तक मनाया जाता हैं पोंगल, जानें इसके प्रकार के बारे में

सूर्य के मकर राशि में गोचर को उत्तरायण के नाम से जाना जाता हैं और दक्षिण भारत में इसे पोंगल के रूप में मनाया जाता हैं। पोंगल 4 दिन तक चलने वाला त्यौंहार हैं। पोंगल का वास्तविक अर्थ होता है उबालना। वैसे इसका दूसरा अर्थ नया साल भी है। गुड़ और चावल उबालकर सूर्य को चढ़ाए जाने वाले प्रसाद का नाम ही पोंगल है। इस भोग में नए चावल की फसल की कटाई से भोग लगाया जाता हैं। आझम आपको बताने जा रहे हैं पोंगल के चार प्रकार के बारे में।

- पहले दिन भोगी पोंगल में इंद्रदेव की पूजा की जाती है। इंद्रदेव को भोगी के रूप में भी जाना जाता है। वर्षा एवं अच्छी फसल के लिए लोग इंद्रदेव की पूजा एवं आराधना पोंगल के पहले दिन करते हैं।

- पोंगल की दूसरी पूजा सूर्य पूजा के रूप में होती है। इसमें नए बर्तनों में नए चावल, मूंग की दाल एवं गुड़ डालकर केले के पत्ते पर गन्ना, अदरक आदि के साथ पूजा करते हैं। सूर्य को चढ़ाए जाने वाले इस प्रसाद को सूर्य के प्रकाश में ही बनाया जाता है।

- तीसरे दिन को मट्टू पोंगल के नाम से मनाया जाता है। मट्टू दरअसल नंदी अर्थात शिव जी के बैल की पूजा इस दिन की जाती है। कहते हैं शिव जी के प्रमुख गणों में से एक नंदी से एक बार कोई भूल हो गई उस भूल के लिए भोलेनाथ ने उसे बैल बनकर पृथ्वी पर जाकर मनुष्यों की सहायता करने को कहा। उसी के याद में आज भी पोंगल का यह पर्व मनाया जाता है।

- चौथा पोंगल कन्या पोंगल है जो यहां के एक काली मंदिर में बड़ी धूमधाम से मनाया जाता। इसमें केवल महिलाएं ही भाग लेती हैं। प्राचीन काल में द्रविण शस्य उत्सव के रूप में इस पर्व को मनाया जाता था। तिरुवल्लुर के मंदिर में प्राप्त शिलालेख में मिलता है कि किलूटूंगा राजा पोंगल के अवसर पर जमीन और मंदिर गरीबों को दान में दिया करते थे। इस अवसर पर नृत्य समारोह एवं सांड के साथ साहसी जंग लड़ने की प्रथा थी। उस समय जो सबसे शक्तिशाली होता था उसे आज के दिन कन्याएं वरमाला डालकर अपना पति चुनती थी।