उत्तर मुखी भवन / भूखण्ड से जुड़े कुछ उपयोगी वास्तु टिप्स

आमतौर पर लोगों का यह मानना है कि उत्तर की ओर जिस मकान का मुख्य द्वार होता है उस घर में रहने वाले लोग सुखी होते हैं। वास्तु शास्त्र में उत्तर दिशा के भवन / भूखण्ड बहुत ही उत्तम माने जाते है। ऐसे भवन जिनके उत्तर दिशा में मार्ग हो वह उत्तर मुखी भवन कहे जाते है। उत्तर दिशा का भवन में रहने वाली स्त्रियों और उस भवन में रहने वालो की आर्थिक स्थिति पर सीधा प्रभाव पड़ता है।

उत्तर मुखी भूखंड उच्च पदों पर आसीन अधिकारियों, व्यवस्थापकों और सरकारी मुलाजिमों के लिए बेहतर होते हैं। इसलिए लोग उत्तर ही ओर मुख वाला घर एवं जमीन खरीदते हैं। लेकिन व्यवहारिकता में ऐसा देखने में आता है कि उत्तर की ओर मुंह वाले घर में रहने वाले लोग भी परेशान रहते हैं और इन्हें भी कई तरह की समस्याओं का सामना करना पड़ता है। दरअसल घर का मुख भले ही उत्तर में हो लेकिन इसमें वास्तु के नियमों का पालन नहीं किया जाए तो उत्तरमुखी घर में रहने वाले व्यक्ति भी कष्ट पाते हैं। आइये जानते हैं किस तरह के वास्तु टिप्स आपके लिए उपयोगी साबित होते हैं।

* उत्तर दिशा के भवन में सामने के अर्थात उत्तर दिशा में बनाये गए कमरो का फर्श दक्षिण और पश्चिम दिशा के कमरों के फर्श से सदैव नीचा ही होना चाहिए।

* बहुत से लोग उत्तर पश्चिम दिशा में मुख्य द्वार के पास ही भूमिगत पानी की टंकी, और बोरिंग बनवा लेते हैं। इसे वास्तुदोष बढ़ जाता है और घर में चोरी की संभावना बढ़ जाती है। ऐसे घर में रहने वाली महिलाएं अधिक चंचल रहती हैं और घर में कम टिकती हैं।

* उत्तर दिशा में सीढ़ी होगी एवं ईशान की तरफ बढ़ती है तो उस घर में लड़कियाँ ज्यादा होगी एवं एक दिन उनके घर में मात्र महिलाए ही रहेगी।

* यदि उत्तर दिशा विकृत है तो गृहस्वामी का चैथा भाव निश्चय ही खराब होगा। ऐसे जातक का मां का सुख, नौकर-चाकर का सुख कमजोर होगा।

* यदि उत्तर दिशा में रसोई के साथ बाथरूम है तो भाइयों में तो प्यार रहेगा लेकिन घर की महिलाओं में आपस में नहीं बनेगी

* यदि उत्तर दिशा में पुरानी वस्तुओं का ढेर है, कूड़ा कचरा आदि का ढेर हो तो ये स्थिति भी घर की सुख-समृधि के लिए घातक है

* उत्तर दिशा में सड़क हो, सड़क से सटकर भवन निर्माण किया हो एवं सड़क वाले भाग को डुपलेक्स बना दिया हो एवं पष्चिम, दक्षिण खाली रख दिया गया हो तो ऐसे भवन में मानो मालिक दिवालिया हो जायेगा।

* भवन में सर्वप्रथम दक्षिण दिशा में निर्माण कराना चाहिए और उत्तर दिशा में सबसे बाद। उत्तर दिशा की चारदीवारी का निर्माण तो बिलकुल अंत में ही होना चाहिए।