नवरात्रि स्पेशल : माँ कूष्मांडा का मुखमंडल है सूर्य की तरह तेजवान, जानें इनके स्वरुप के बारे में

नवरात्रि का त्योहार पूरे देश में बड़े धूमधाम के साथ मनाया जा रहा हैं और आज चौथे दिन माँ कूष्मांडा का पूजन किया जा रहा हैं। रिद्धि-सिद्धि प्रदान करने वाली और सभी कष्टों का नाश करने वाली माँ कूष्मांडा हमारे जीवन में खुशियाँ लेकर आती हैं। मातारानी का मुखमंडल ही सूर्य की तरह तेजवान है जो हमारे में सकारात्मक ऊर्जा का संचार करता हैं। आज नवरात्रि के चतुर्थ दिन जो कि माँ कूष्मांडा को समर्पित होता हैं, उस पर हम आपके लिए माँ कूष्मांडा के स्वरुप का वर्णन लेकर आए हैं। तो आइये जानते हैं इस बारे में।

पुराण में बताया गया है कि प्रलय से लेकर सृष्टि के आरंभ तक चारों ओर अंधकार ही अंधकार था और सृष्टि बिल्कुल शून्य थी तब आदिशक्ति मां दुर्गा ने अंड रूप में ब्रह्मांड की रचना की। इसी कारण देवी का चौथा स्वरूप कूष्मांडा कहलाया।

सृष्टि की उत्पत्ति करने वाली देवी कूष्मांडा को आदिशक्ति के रूप में जाना जाता है। इनके स्वरूप का वर्णन करते हुए पुराण में कहा गया है कि इनकी आठ भुजाएं हैं और ये सिंह पर सवार हैं। मां कूष्मांडा के सात हाथों में चक्र, गदा, धनुष, कमण्डल, अमृत से भरा हुआ कलश, बाण और कमल का फूल है तथा आठवें हाथ में माता के जपमाला है जो सभी प्रकार की सिद्धियों से युक्त है।

सूर्य के प्रभामंडल के अंदर इनका निवास माना गया है। इनका मुखमंडल भी सूर्य की भांति देदीप्यमान रहता है। इसीलिए माना जाता है कि नवरात्र में इनकी पूजा अर्चना करने से साधक को तेज की प्राप्ति होती है। ऐसी भी मान्यता है कि इनके तेज के कारण ही साधक की सभी व्याधियां यानी बीमारियां भी नष्ट हो जाती हैं

देवी कूष्मांडा मनुष्य को बल और आरोग्य प्रदान करने वाली हैं। इनकी पूजा में खीर, मालपूआ और मिष्टान का भोग लगाना चाहिए। नवरात्र के चौथे दिन देवी की पूजा करते समय ‘सुरासंपूर्णकलशं, रुधिराप्लुतमेव च। दधाना हस्तपद्माभ्यां कूष्मांडा शुभदास्तु मे।।’ इस मंत्र से ध्यान करना चाहिए।