नवरात्रि पर की जाती है कलश स्थापना, जानें मुहूर्त और पूजन विधि

हर साल आश्विन शुक्ल प्रतिपदा से शारदीय नवरात्रा का प्रारंभ होता हैं, जो इस बार 10 अक्टूबर से प्रारंभ हो रही हैं। देश के हर हिस्से में नवरात्रा के दिनों में मातारानी की पूजा-अर्चना की जाती हैं। नवरात्रि का प्रारंभ कलश स्थापना के साथ किया जाता हैं। जिसका सही मुहूर्त देखकर और पूर्ण पूजन विधि के साथ किया जाना जरूरी हैं। मंदिरों के साथ ही घरों में भी घट स्थापना की जाती हैं। तो आइये जानते हैं नवरात्रि पर कलश स्थापना का शुभ मुहूर्त और पूजन विधि के बारे में।

* नवरात्र कलश स्थापना शुभ मुहूर्त :

इस साल कलश स्थापित करने का शुभ मुहूर्त सुबह 7 बजकर 26 मिनट तक है। अगर इस समय तक कलश नहीं बैठा पाते हैं तो फिर आपको दोपहर तक का इंतजार करना होगा। दोपहर में अभिजित मुहूर्त 11 बजकर 51 मिनट से लेकर 12 बजकर 39 मिनट तक रहेगा। इस दौरान नवरात्र पूजन के लिए कलश स्थापित किया जा सकता है।
पंचांग के अनुसार इस वर्ष सुबह 7 बजकर 26 मिनट तक ही प्रतिपदा तिथि है। इसके बाद द्वितीय तिथि लग जाएगी लेकिन द्वितीया तिथि को क्षय माना जाएगा क्योंकि सूर्योदय के समय प्रतिपदा तिथि रहेगी इससे परे दिन प्रतिपदा तिथि ही मान्य रहेगी। ऐसे में घट स्थापना के लिए सबसे उत्तम समय प्रातः 7 बजकर 26 मिनट तक है।

* नवरात्र घट स्थापना विधि :

नवरात्र में कलश स्थापित करने वाले को सबसे पहले पवित्र होने के मंत्र- ॐ अपवित्रः पवित्रो वा सर्वावस्थां गतोऽपि वा। यः स्मरेत्पुण्डरीकाक्षं स बाह्याभ्यन्तरः शुचिः॥ इस मंत्र से स्वयं को और पूजन सामग्रियों को पवित्र कर लेना चाहिए। इसके बाद दाएं हाथ में अक्षत, फूल और जल लेकर दुर्गा पूजन का संकल्प करना चाहिए।

माता की मूर्ति या तस्वीर के सामने कलश मिट्टी के ऊपर रखकर हाथ में अक्षत, फूल, और गंगाजल लेकर वरुण देवता का आह्वान करना चाहिए। कलश में सर्वऔषधी एवं पंचरत्न डालें। कलश के नीचे रखी मिट्टी में सप्तधान्य और सप्तमृतिका मिलाएं।

आम के पत्ते कलश में डालें। कलश के ऊपर एक पात्र में अनाज भरकर इसके ऊपर एक दीप जलाएं। कलश में पंचपल्लव डालें इसके ऊपर लाल वस्त्र लपेटकर एक पानी वाला नारियल रखें।

कलश के नीचे मिट्टी में जौ के दानें फैलाएं। देवी का ध्यान करें- खड्गं चक्र गदेषु चाप परिघांछूलं भुशुण्डीं शिर:, शंखं सन्दधतीं करैस्त्रि नयनां सर्वांग भूषावृताम।

नीलाश्मद्युतिमास्य पाद दशकां सेवे महाकालिकाम, यामस्तीत स्वपिते हरो कमलजो हन्तुं मधुं कैटभम॥

इसके बाद गणेशजी और सभी देवी-देवाताओं की पूजा करें। अंत में भगवान शिव और ब्रह्मा जी की पूजा करनी चाहिए।