नरक चतुर्दशी को कहते है छोटी दीपावली, जानें इससे जुडी पौराणिक कथा

कार्तिक माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को नरक चतुर्दशी के रूप में जाना जाता हैं। दिवाली से पहले आने वाले इस दिन को छोटी दिवाली के तौर पर मनाया जाता हैं। इस दिन का महत्व बहुत बड़ा मना गया हैं। सभी लोग अपने घरों को दीपों के साथ प्रकाशमय करते हैं और घर से नकारात्मकता के अँधेरे को दूर करते हैं। नरक चतुर्दशी को ‘रूप चौदस’, ‘रूप चतुर्दशी', ‘नरक चौदस’ और ‘नरका पूजा’ के नाम से भी जाना जाता हैं। क्या आप इस दिन के पीछे का इतिहास जानते हैं। आइये आज हम बताते हैं आपको इसके बारे में।

हिन्दू मान्यताओं के अनुसार यह माना जाता है कि कार्तिक कृष्णपक्ष चतुर्दशी के दिन मृत्यु के देवता यमराज की पूजा का विधान है। दीपावली से एक दिन पहले मनाई जाने वाली नरक चतुर्दशी के दिन संध्या के पश्चात दीपक प्रज्जवलित किए जाते हैं। इस चतुर्दशी का पूजन कर अकाल मृत्यु से मुक्ति तथा स्वास्थ्य सुरक्षा के लिए यमराज जी की पूजा व उपासना की जाती है।

अन्य प्रसंगानुसार भगवान श्रीकृष्ण ने कार्तिक माह में कृष्ण चतुर्दशी के दिन नरकासुर का वध करके देवताओं व ऋषियोंको उसके आतंक से मुक्ति दिलवाई थी। इसके साथ ही कृष्ण भगवान ने सोलह हज़ार कन्याओं को नरकासुर के बंदीगृह से मुक्त करवाया। इसी उपलक्ष्य में नगरवासियों ने नगर को दीपों से प्रकाशित किया और उत्सव मनाया। तभी से नरक चतुर्दशी का त्यौहार मनाया जाने लगा।