रक्षाबंधन स्पेशल : राखी का होता हैं विशेष पौराणिक महत्व, जानें इसकी कथाएँ

रक्षाबंधन के इस पावन पर्व का पौराणिक महत्व माना जाता हैं और पुराणों में भी कई ऐसे किस्से देखने को मिलते हैं जो इस पावन पर्व की महत्ता को बढ़ाने का काम करते है। शास्त्रों में भी इस पर्व को शुभ फलदायक बताया गया हैं। आज इस कड़ी में हम आपके लिए रक्षाबंधन की पौराणिक कथाओं से जुड़ी जानकारी लेकर आए हैं जो इसके महत्व को दर्शाती हैं। तो आइये जानते हैं इनके बारे में।

महाभारत से जुड़ी है कहानी

इस त्योहार से महाभारत की कथा भी जुड़ी हुई है। युद्ध में पांडवों की जीत को सुनिश्चित करने के लिए भगवान श्रीकृष्ण ने युद्धिष्ठिर को सेना की रक्षा के लिए राखी का त्योहार मनाने का सुझाव दिया था। वहीं अभिमन्‍यु युद्ध में विजयी हों, इसके लिए उनकी दादी माता कुंती ने भी उनके हाथ पर रक्षा सूत्र बांधकर भेजा था। वहीं द्रौपदी ने भी उनकी लाज बचाने वाले अपने सखा और भाई कृष्‍णजी को भी राखी बांधी थी। इस दिन सावन के महीने की पूर्णिमा तिथि थी।

राजा दशरथ और श्रवण कुमार से जुड़ा है रक्षाबंधन

हर साल सावन मास की पूर्णिमा को मनाए जाने वाले इस त्‍योहार को लेकर कई मान्‍यताएं हैं। कहीं-कहीं इसे गुरु-शिष्‍य परंपरा का प्रतीक माना जाता है। माना जाता है कि यह त्‍योहार महाराज दशरथ के हाथों श्रवण कुमार की मृत्‍यु से भी जुड़ा है। इसलिए मानते हैं कि यह रक्षासूत्र सबसे पहले गणेशजी को अर्पित करना चाहिए और फिर श्रवण कुमार के नाम से एक राखी अलग निकाल देनी चाहिए। जिसे आप प्राणदायक वृक्षों को भी बांध सकते हैं।

इंद्र की पत्‍नी ने बांधी थी राखी

पौराणिक कथाओं में पति-पत्‍नी के बीच भी राखी का त्‍योहार मनाने की परंपरा का वर्णन मिलता है। एक बार देवराज इंद्र और दानवों के बीच में भीषण युद्ध हुआ था तो दानवों की हार होने लगी थी। तब देवराज की पत्‍नी शुचि ने गुरु बृहस्पति के कहने पर देवराज इंद्र की कलाई पर रक्षासूत्र बांधा था। तब जाकर समस्‍य देवताओं के प्राण बच पाए थे।