गंगा नदीं को सबसे पवित्र और पूजनीय माना जाता हैं जो कि पा का नाश करने वाली और हरने वाली हैं। शास्त्रों के अनुसार इस धरती पर पापनाशिनी, मोक्षप्रदायिनी, सरितश्रेष्ठा एवं पुण्यसलिला मां गंगा का अवतरण ज्येष्ठ माह की दशमी तिथि को हुआ था जिसे हर साल गंगा दशहरा के रूप में मनाया जाता हैं। इस साल गंगा दशहरा 1 जून 2020, सोमवार को पड़ रहा हैं। आज हम आपको गंगन के धरती पर अवतरण की पौराणिक कहानी के बारे में अतने जा रहे हैं। तो आइये जानते हैं इसके बारे में।
Ganga Dussehra 2020 : मनुष्य को पापों से मुक्ति दिलाता हैं गंगा स्नान, जानें महत्व और मुहूर्त Ganga Dussehra 2020 : घर पर ही करें दशविध स्नान, मिलेगा अश्वमेध यज्ञ के समान फल Ganga Dussehra 2020 : मां गंगा की इस आरती के साथ करें पूजन, मिलेगी पापों से मुक्ति
पदमपुराण के अनुसार आदिकाल में ब्रह्माजी ने सृष्टि की 'मूलप्रकृति' से कहा-''हे देवी! तुम समस्त लोकों का आदिकारण बनो,मैं तुमसे ही संसार की सृष्टि प्रारंभ करूँगा''। ब्रह्मा जी के कहने पर मूलप्रकृति-गायत्री, सरस्वती, लक्ष्मी, उमादेवी, शक्तिबीजा, तपस्विनी और धर्मद्रवा इन सात स्वरूपों में प्रकट हुईं। इनमें से सातवीं 'पराप्रकृति धर्मद्रवा' को सभी धर्मों में प्रतिष्ठित जानकार ब्रह्मा जी ने अपने कमण्डलु में धारण कर लिया। राजा बलि के यज्ञ के समय वामन अवतार लिए जब भगवान विष्णु का एक पग आकाश एवं ब्रह्माण्ड को भेदकर ब्रह्मा जी के सामने स्थित हुआ, उस समय अपने कमण्डलु के जल से ब्रह्माजी ने श्री विष्णु के चरण का पूजन किया।चरण धोते समय श्री विष्णु का चरणोदक हेमकूट पर्वत पर गिरा। वहां से भगवान शिव के पास पहुंचकर यह जल गंगा के रूप में उनकी जटाओं में समा गया। गंगा बहुत काल तक शिव की जटाओं में भ्रमण करती रहीं।तत्पश्चात सूर्यवंशी राजा भगीरथ ने अपने पूर्वज सगर के साठ हज़ार पुत्रों का उद्धार करने के लिए शिवजी की घोर तपस्या की। भगवान शंकर ने प्रसन्न होकर गंगा को पृथ्वी पर उतार दिया। उस समय गंगाजी तीन धाराओं में प्रकट होकर तीनों लोकों में चली गयीं और संसार में त्रिस्रोता के नाम से विख्यात हुईं।