जल्द ही रमजान के पवित्र महीने की शुरुआत होने वाली हैं जिसमें मुस्लिम संप्रदाय द्वारा रोजा रख नमाज अदा की जाती हैं। इसी के साथ ही रमजान के इस पाक महीने में जकात और फितरा अल्लाह की राह में खर्च करने का सबसे अहम व आसान रास्ता है। माना जाता हैं कि मुसलमान ढाई फीसदी जकात देकर अपनी जान-माल की हिफाजत कर सकता है। आज हम आपको उन लोगों की जानकारी देने जा रही हैं जिन्हें उश्र व ज़कात का माल देना जायज़ है।
फक़ीर : वह शख्स है के उसके पास कुछ माल है, मगर निसाब से कम है, मगर उसका सवाल करके मांगना नाजाइज़ है।
मिस्कीन : वह शख्स है, जिसके पास कुछ न हो न खाने को ग़ल्ला और न पहनने को कपड़े हों मिस्कीन को सवाल करना भी हलाल है।
क़र्ज़दार : वह शख्स है, जिसके जिम्मे कर्ज़ हो, जिम्मे कर्ज़ से ज्यादा माल ब क़दरे जरूरत ब क़दरे निसाब न हो।
मुसाफ़िर : वह शख्स है, जिसके पास सफर की हाल में माल न रहा, उसे बक़दरे जरूरत ज़कात देना जाइज़ है।
आमिल : वह शख्स है, जिसको बादशाह इस्लाम ज़कात व उश्र वसूल करने के लिए मुक़र्रर किया हो।
मुकातिब : वह गुलाम है, जो अपने मालिक को माल देकर आज़ाद होना चाहे।
फ़ी सबीलिल्लाह : यानी राहे खुदा में खर्च करना। इसकी कई सूरतें हैं जैसे कोई जेहाद में जाना चाहता है या तालिबे इल्म हे, जो इल्मेदीन पढ़ता है, उसे भी ज़कात दे सकते हैं।