महाभारत के कर्ण से जुड़ा है पितृपक्ष, यह पौराणिक कथा दूर करती है पितृदोष

भारत के हर क्षेत्र में श्राद्ध पर्व पूरी आदर भावना के साथ मनाया जाता हैं। पितृदोष का निवारण भी इस पितृपक्ष में किया जा सकता हैं। लेकिन क्या आप जानते हैं कि पितृपक्ष की कथा महाभारत के कर्ण से जुडी हैं। जी हाँ, एक पौराणिक कथा के अनुसार महाभारत के कर्ण द्वारा पूर्वजों को याद करने की वजह से पितृपक्ष मनाया जाता हैं और इस कथा को सुनने मात्र से पितृदोष से मुक्ति मिलती हैं। तो आइये जानते हैं महाभारत के कर्ण की इस पौराणिक कथा के बारे में।

कथा के अनुसार, महाभारत के दौरान, कर्ण की मृत्यु हो जाने के बाद जब उनकी आत्मा स्वर्ग में पहुंची तो उन्हें बहुत सारा सोना और गहने दिए गए। कर्ण की आत्मा को कुछ समझ नहीं आया, वह तो आहार तलाश रहे थे।

उन्होंने देवता इंद्र से पूछा किउन्हें भोजन की जगह सोना क्यों दिया गया। तब देवता इंद्र ने कर्ण को बताया कि उसने अपने जीवित रहते हुए पूरा जीवन सोना दान किया लेकिन अपने पूर्वजों को कभी भी खाना दान नहीं किया। तब कर्ण ने इंद्र से कहा उन्हें यह ज्ञात नहीं था कि उनके पूर्वज कौन थे और इसी वजह से वह कभी उन्हें कुछ दान नहीं कर सकें।
इस सबके बाद कर्ण को उनकी गलती सुधारने का मौका दिया गया और 16 दिन के लिए पृथ्वी पर वापस भेजा गया, जहां उन्होंने अपने पूर्वजों को याद करते हुए उनका श्राद्ध कर उन्हें आहार दान किया। तर्पण किया, इन्हीं 16 दिन की अवधि को पितृ पक्ष कहा गया।