भगवान श्रीराम ने किया था यहाँ पूर्वजों का पिंडदान, माना जाता हैं पितृ तर्पण की प्रथम वेदी

श्राद्ध पक्ष चल रहा हैं और इसे समाप्त होने में अब कुछ ही दिन बचे हैं। आपने अभी तक अपने परिजनों का श्राद्ध नहीं किया हैं तो आप अमावस्या के दिन पूरे विधिपूर्वक इसकों संपन्न कर सकते हैं। इससे आपके पितरों का आशीर्वाद आपको प्राप्त होगा। लेकिन क्या आप जानते हैं कि लोग आदि गंगा कही जाने वाली पुनपुन नदी पर भी श्राद्ध के लिए जाते हैं और इसे पितृ तर्पण की प्रथम वेदी कहा जाता हैं। सर्वप्रथम भगवान श्रीराम ने यहाँ पर पूर्वजों का पिंडदान किया था। आइये जानते हैं इसके बारे में।

आश्विन मास की कृष्ण पक्ष प्रतिपदा से आरंभ होकर अमावस्या तक चलने वाले पितृ पक्ष के मौके पर अपने पूर्वजों की मोक्ष की कामना लिए लाखों लोग गया आते हैं। पितरों के मोक्ष की कामना लिए गया आने वाले श्रद्धालु सबसे पहले राजधानी पटना से करीब 13 किलोमीटर दूर पुनपुन पहुंचते हैं, जहां आदि गंगा पुनपुन के तट पर पहला पिंडदान किया जाता है।

पुनपुन का घाट प्रथम पिंडदान स्थल है, जहां देश-विदेश के श्रद्धालु अपने पितरों के लिए पूजा एवं तर्पण करते हैं। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, पुनपुन नदी को पितृ तर्पण की प्रथम वेदी के रूप में स्वीकार किया गया है। ऐसा कहा जाता है कि मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्रीराम ने सबसे पहले पुनपुन नदी के तट पर ही अपने पूर्वजों का पिंडदान किया था। उसके बाद ही उन्होंने गया में फल्गु नदी के तट पर पिंडदान किया था।

परंपरा के अनुसार, पितृ पक्ष के दौरान पितरों के मोक्ष दिलाने के लिए गया में पिंडदान से पहले पितृ-तर्पण की प्रथम वेदी के रूप में मशहूर पुनपुन नदी में प्रथम पिंडदान का विधान है। पुराणों में वर्णित 'आदि गंगा' पुन: पुन: कहकर पुनपुन को आदि गंगा के रूप में महिमामंडित किया गया है और इसकी महत्ता सर्वविदित है।

पौराणिक कथाओं के अनुसार, इस स्थल पर गयासुर राक्षस का चरण है। गयासुर राक्षस को वरदान प्राप्त था कि सर्वप्रथम उसके चरण की पूजा होगी। उसके बाद ही गया में पितरों का पिंडदान होगा। आदि गंगा पुनपुन में पिंडदान करने के बाद ही गयाजी में किया गया पिंडदान पितरों को स्वीकार्य होता है।