मैनेजमेंट मंत्र / कृष्ण से सीखें जीने की कला, कैसे लाए जीवन में सुख-शांति

मैंनेजमेंट मास्टर कहें या जगतगुरु, गिरधारी कहें या रणछोड़। भगवान कृष्ण के जितने नाम हैं, उतनी कहानियां। जीवन जीने के तरीके को अगर किसी ने परिभाषित किया है तो वो कृष्ण हैं। कर्म से होकर परमात्मा तक जाने वाले मार्ग को उन्हीं ने बताया है। संसार से वैराग्य को सिरे से नकारा। कर्म का कोई विकल्प नहीं, ये सिद्ध किया। कृष्ण कहते हैं, मैं हर हाल में आता हूं, जब पाप और अत्याचार का अंधकार होता है तब भी, जब प्रेम और भक्ति का उजाला होता है तब भी। दोनों ही परिस्थिति में मेरा आना निश्चित है। भगवान कृष्ण के जीवन में ऐसे कई प्रसंग हैं जो हमें सिखाते हैं कि जीवन में सुख-शांति कैसे लाई जाए।

खुद की मानसिक शांति के लिए

निजी जीवन यानि खुद के लिए निकाला गया समय। जब व्यक्ति दुनिया से अलग खुद के साथ होता है। मानसिक शांति के लिए ये आवश्यक है। मानसिक शांति के लिए एकांत और एकांत को सफल बनाने के लिए कोई साधन आवश्यक है। कृष्ण के पास तीन साधन थे। संगीत, प्रकृति और ध्यान। ब्रज मंडल में यमुना किनारे एकांत में बांसुरी की धुन उन्हें मानसिक शांति देती थी। दूसरा, प्रकृति के निकट रहने के लिए कृष्ण अक्सर यात्राएं करते थे। एक राज्य से दूसरे राज्य। जब वे धरती से असुरों का साम्राज्य समाप्त करने निकले थे, तो एक राज्य से दूसरे राज्य के बीच की यात्रा में वे प्रकृति के निकट रहते थे। तीसरा है ध्यान। कम ही लोग जानते हैं कि कृष्ण नियमित ध्यान भी करते थे। निजी जीवन को लेकर कृष्ण सचेत थे। वे अपने लिए एकांत खोज लेते थे।

परिवार कैसा हो और उसके संस्कार कैसे हों

परिवार कैसा हो और उसके संस्कार कैसे हों, ये भगवान कृष्ण के जीवन से सीखना चाहिए। परिवार की कमान एक हाथ में होनी चाहिए। द्वारिका में जब भगवान कृष्ण होते थे तो सारे राज्य का संचालन उनके हाथ में होता था, लेकिन परिवार का संचालन रूक्मिणी के हाथ में होता था। परिवार में सदस्यों का सम्मान कैसा होना चाहिए, इसका सबसे अच्छा उदाहरण भागवत में है। जब भगवान कृष्ण रूक्मिणी का हरण करके लाए, तो रास्ते में रूक्मिणी के भाई रूक्मी से उनका युद्ध हुआ। भगवान कृष्ण ने रूक्मी का आधा गंजाकरके छोड़ दिया।

अपने भाई का अपमान देख रूक्मिणी असहज हो गईं। द्वारिका पहुंचते ही, बलराम ने रूक्मिणी से कहा कि कृष्ण ने तुम्हारे भाई के साथ जो किया उसके लिए मैं तुमसे क्षमा मांगता हूं। तुम अब इस घर की सदस्य हो, तुम्हें यहां वैसा ही सम्मान मिलेगा, जैसा तुम्हें अपने परिवार में मिलना चाहिए। बलराम की इस बात से रूक्मिणी एकदम सहज हो गईं। परिवार में हर सदस्य का सम्मान वैसा ही हो, जिसका वो अधिकारी है। ये कृष्ण के जीवन से सीखा जा सकता है।