जलझुलनी ग्यारस व्रत करने से होती है पुण्य की प्राप्ति, जानें इसकी पूर्ण विधि

हिन्दू धर्म के अनुसार सभी रीति-रिवाज की अपनी अलग मान्यता होती है और उसको करने का अपना अलग ही तरीका होता है। भाद्रपद माह में आने वाली जलझुलनी ग्यारस की भी बहुत अधिक मान्यता मानी जाती है। इसे परिवर्तनी या डोल ग्यारस के नाम से भी जाना जाता है। इस बार जलझुलनी ग्यारस 20 सितम्बर को मनाई जा रही है। आज हम आपको जलझुलनी ग्यारसकरने की विधि के बारे में बताने जा रहे हैं।तो आइये जानते है इस बारे में।

विधि:
परिवर्तिनी एकादशी व्रत का नियम पालन दशमी तिथि की रात से ही शुरू करें व ब्रह्मचर्य का पालन करें। एकादशी के दिन सुबह स्नान आदि करने के बाद साफ कपड़े पहनकर भगवान वामन की प्रतिमा के सामने बैठकर व्रत का संकल्प लें। इस दिन यथासंभव उपवास करें उपवास में अन्न ग्रहण नहीं करें संभव न हो तो एक समय फलाहारी कर सकते हैं।

इसके बाद भगवान वामन की पूजा विधि-विधान से करें (यदि आप पूजन करने में असमर्थ हों तो पूजन किसी योग्य ब्राह्मण से भी करवा सकते हैं।) भगवान वामन को पंचामृत से स्नान कराएं। स्नान के बाद उनके चरणामृत को व्रती (व्रत करने वाला) अपने और परिवार के सभी सदस्यों के अंगों पर छिड़कें और उस चरणामृत को पीएं। इसके बाद भगवान को गंध, पुष्प, धूप, दीप, नैवेद्य आदि पूजन सामग्री अर्पित करें

विष्णु सहस्त्रनाम का जाप एवं भगवान वामन की कथा सुनें। रात को भगवान वामन की मूर्ति के समीप हो सोएं और दूसरे दिन यानी द्वादशी के दिन वेदपाठी ब्राह्मणों को भोजन कराकर दान देकर आशीर्वाद प्राप्त करें जो मनुष्य यत्न के साथ विधिपूर्वक इस व्रत को करते हुए रात्रि जागरण करते हैं, उनके समस्त पाप नष्ट होकर अंत में वे स्वर्गलोक को प्राप्त होते हैं। इस एकादशी की कथा के श्रवणमात्र से वाजपेई यज्ञ का फल प्राप्त होता है।